हाल ही में सामने आई एक रिपोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति और परमाणु कूटनीति में खलबली मचा दी है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अमेरिका ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों को निशाना बनाने की विस्तृत योजना तैयार की थी, लेकिन आखिरकार केवल एक ही ठिकाने को नष्ट किया गया। यह खुलासा अमेरिका की मध्य पूर्व नीति और सैन्य रणनीति को लेकर कई सवाल खड़े करता है।
क्या था ईरान का मामला?
लंबे समय से पश्चिमी देशों, विशेष रूप से अमेरिका और उसके सहयोगी देशों, की नजरों में रहा है। इसका मुख्य कारण उसका परमाणु कार्यक्रम है, जिसे अमेरिका और इजराइल जैसे देश संभावित खतरे के रूप में देखते हैं। कई बार ईरान पर आरोप लगे कि वह परमाणु बम बनाने की दिशा में कार्य कर रहा है, जबकि ईरान का दावा है कि उसका कार्यक्रम पूरी तरह से शांतिपूर्ण और ऊर्जा उत्पादन के उद्देश्य से है।
रिपोर्ट में क्या है खुलासा?
इस रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी सेंट्रल कमांड ने ईरान के खिलाफ एक विस्तृत सैन्य योजना बनाई थी, जिसमें ईरान के तीन अलग-अलग परमाणु ठिकानों को कई हफ्तों तक निशाना बनाया जाना था। इस योजना में एक ही रात में हमला शुरू करने की बात थी, लेकिन इसका विस्तार कई सप्ताहों तक चलने वाला था।
हालांकि, रिपोर्ट के मुताबिक, वास्तविकता यह रही कि केवल एक ठिकाने पर हमला हुआ और शेष दो ठिकानों को निशाना नहीं बनाया जा सका। इसका कारण या तो खुफिया जानकारी का अभाव था या फिर अंतरराष्ट्रीय दबाव, राजनीतिक अनिश्चितता और रणनीतिक पुनर्विचार।
अमेरिका की रणनीति पर सवाल
यह खुलासा अमेरिका की सैन्य योजना और उसके क्रियान्वयन पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाता है। यदि अमेरिका ने सचमुच इतने बड़े पैमाने पर योजना बनाई थी, तो फिर वह केवल एक ही ठिकाने तक क्यों सीमित रह गया? क्या यह योजना पहले ही लीक हो गई थी? अमेरिका को क्या अंतरराष्ट्रीय मंच पर समर्थन की कमी का सामना करना पड़ा? क्या यह सैन्य दबाव बनाने का एक कूटनीतिक प्रयास मात्र था?
इन सवालों का कोई सीधा जवाब फिलहाल सामने नहीं आया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका का यह कदम अधिक रणनीतिक संदेश देने के उद्देश्य से उठाया गया था न कि युद्ध को बढ़ाने के लिए।
ईरान की प्रतिक्रिया
अभी तक इस रिपोर्ट पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन पहले भी उसने कहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से वैधानिक है और अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुरूप है। वह किसी भी आक्रामकता का जवाब देने के लिए तैयार है और उसे आत्मरक्षा का अधिकार है।
ईरान ने यह भी दावा किया है कि उसका कार्यक्रम IAEA (International Atomic Energy Agency) की निगरानी में चल रहा है, और अमेरिका द्वारा बार-बार लगाए जा रहे आरोप आधारहीन हैं।
वैश्विक प्रभाव
इस तरह की रिपोर्टें अंतरराष्ट्रीय स्थिरता और शांति पर बड़ा प्रभाव डाल सकती हैं। यदि अमेरिका और ईरान के बीच तनाव फिर से बढ़ता है, तो इसका असर केवल पश्चिम एशिया पर ही नहीं, बल्कि वैश्विक तेल आपूर्ति, व्यापार, और कूटनीतिक संतुलन पर भी पड़ेगा। भारत जैसे देश, जो ऊर्जा के लिए मध्य पूर्व पर निर्भर हैं, इस प्रकार के किसी भी संघर्ष से प्रभावित हो सकते हैं।
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