बिहार की राजनीति इस समय बेहद गर्म है। आने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए विपक्षी गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर लगातार माथापच्ची हो रही है। ताज़ा खबर यह है कि कांग्रेस नेतृत्व, विशेषकर मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी की बैठक में सीट शेयरिंग के बैड-गुड फ़ॉर्मूले को लेकर अहम निर्णय लिया गया है। इस फ़ॉर्मूले से जहां कांग्रेस के खेमे में उत्साह है, वहीं राजद (RJD) की चिंता बढ़ गई है। वहीं लोक जनशक्ति पार्टी (पासवान गुट) और झारखंड मुक्ति मोर्चा (हेमंत सोरेन गुट) पर अभी पिक्चर बाकी है।
क्या है बैड-गुड फ़ॉर्मूला?
बैड-गुड फ़ॉर्मूला दरअसल सीट बंटवारे का एक नया पैमाना है। इसके तहत पिछली बार की सीटों के प्रदर्शन और वर्तमान जनाधार के आधार पर तय किया जाएगा कि किस दल को कितनी सीटें दी जाएं। उदाहरण के लिए, जिन सीटों पर किसी दल का प्रदर्शन अच्छा (गुड) रहा है और वहां वोट प्रतिशत मज़बूत है, वे सीटें उसी दल को दी जाएंगी। जबकि जिन सीटों पर किसी दल का प्रदर्शन कमजोर (बैड) रहा, वहां दूसरे दल को प्राथमिकता दी जाएगी।
यह फ़ॉर्मूला कांग्रेस के लिए फ़ायदेमंद दिख रहा है, क्योंकि पिछली बार कांग्रेस ने कई सीटों पर अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था। ऐसे में अब वे सीटें उसे मिल सकती हैं, जहां उसका ग्राउंड सपोर्ट बेहतर है लेकिन पिछली बार हार मिली थी।
RJD क्यों परेशान?
राजद को इस फ़ॉर्मूले से सबसे बड़ा झटका लग सकता है। अब तक बिहार में विपक्षी गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते राजद सीटों की दावेदारी में हावी रहती थी। लेकिन बैड-गुड फ़ॉर्मूला लागू होने पर उसे कई सीटें छोड़नी पड़ सकती हैं। राजद को डर है कि कांग्रेस को अपेक्षा से अधिक सीटें मिल जाएंगी और गठबंधन में उसकी पकड़ कमजोर हो सकती है।
तेजस्वी यादव और उनकी टीम इस बात से चिंतित है कि अगर कांग्रेस को ज़्यादा सीटें मिलती हैं तो चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पर भी असर पड़ सकता है।
बैड-गुड पर खरगे-राहुल की बैठक का निर्णय
दिल्ली में हुई बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी ने मिलकर यह निर्णय लिया कि बिहार में सीट बंटवारे का आधार यह नया फ़ॉर्मूला होगा। सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस नेताओं ने इस पर ज़ोर दिया कि पिछली बार के प्रदर्शन के आधार पर कांग्रेस को कम आंकना सही नहीं होगा। बिहार में उनकी पार्टी का संगठन अब मज़बूत हुआ है और महागठबंधन को जीत दिलाने के लिए संतुलित बंटवारा ज़रूरी है।
पासवान और सोरेन पर तस्वीर साफ नहीं
बैठक में लोक जनशक्ति पार्टी (चिराग और पासवान गुट) और झारखंड मुक्ति मोर्चा (हेमंत सोरेन) की स्थिति पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। माना जा रहा है कि इन दोनों दलों की सीटों को लेकर बाद में अलग बैठक होगी। चिराग पासवान की पार्टी का बिहार की राजनीति में अहम असर है, खासकर दलित वोट बैंक पर। वहीं, झारखंड में हेमंत सोरेन का प्रभाव कांग्रेस के लिए बेहद ज़रूरी है।
गठबंधन की चुनौतियां
महागठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि सभी दलों को संतुष्ट किया जाए। राजद, कांग्रेस, वाम दल, लोजपा (पारस), और जेएमएम—ये सभी अपने-अपने क्षेत्र और वोट बैंक की राजनीति करते हैं। अगर सीट बंटवारे में किसी दल की नाराज़गी बढ़ती है तो उसका असर सीधे चुनावी नतीजों पर पड़ेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि महागठबंधन तभी भाजपा और एनडीए को टक्कर दे सकता है, जब सभी दल एकजुट होकर चुनाव लड़ें। छोटी-छोटी नाराज़गियां अगर बढ़ीं तो इसका नुकसान विपक्ष को ही उठाना पड़ेगा।
राजनीतिक हलकों में चर्चा
बिहार की सियासत पर नज़र रखने वाले विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस का यह कदम रणनीतिक तौर पर मज़बूत है। पार्टी बिहार में अपना खोया जनाधार वापस लाना चाहती है। वहीं राजद की टेंशन भी समझी जा सकती है, क्योंकि उसे अब तक गठबंधन में सबसे बड़े खिलाड़ी का दर्जा मिला हुआ था।
कुछ जानकारों का कहना है कि बैड-गुड फ़ॉर्मूला लागू करने से कांग्रेस को 25-30 सीटों तक मिल सकती हैं, जबकि राजद को लगभग 80-90 सीटों पर सिमटना पड़ सकता है। यह तेजस्वी यादव के लिए बड़ा झटका होगा।
बैड-गुड का आगे क्या हैं फ़ॉर्मूला ?
फिलहाल, पासवान और सोरेन की भूमिका तय होना बाकी है। इन दोनों के बिना महागठबंधन का समीकरण अधूरा माना जा रहा है। वहीं, भाजपा इस पूरी स्थिति पर बारीकी से नज़र बनाए हुए है और वह विपक्षी दलों की अंदरूनी खींचतान को अपने लिए फ़ायदे का मौका मान रही है।
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