14 जुलाई 2025 को एक सनसनीखेज खुलासा सामने आया है जो अतीक अहमद और कथित तौर पर धार्मिक छवि वाले छंगूर बाबा के बीच राजनीतिक संबंधों को उजागर करता है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में छंगूर बाबा ने अतीक अहमद के लिए श्रावस्ती सीट से प्रचार किया था। यह दावा अब कई पुराने वीडियो और चश्मदीदों के बयानों के आधार पर सामने आया है, जो यह दर्शाते हैं कि छंगूर बाबा ने चुनावी सभाओं में मंच साझा कर अतीक के पक्ष में वोट मांगे थे।
राजनीतिक मंच पर छंगूर बाबा का धार्मिक चेहरा
छंगूर बाबा को आमतौर पर एक धार्मिक नेता के रूप में जाना जाता है। लेकिन 2014 में उनके मंच पर आने और अतीक अहमद के पक्ष में प्रचार करने से यह साफ होता है कि वह धार्मिक सीमाओं से आगे निकलकर सीधे तौर पर राजनीति में सक्रिय हो चुके थे। यह प्रचार विशेष रूप से मुस्लिम बहुल इलाकों में केंद्रित था, जहां बाबा का प्रभाव माना जाता है। यह भी दावा किया गया है कि बाबा ने अतीक के लिए समर्थन जुटाने हेतु कई धार्मिक सभाओं को राजनीतिक रंग देकर इस्तेमाल किया।
अतीक अहमद और विवादों का इतिहास
अतीक अहमद उत्तर प्रदेश की राजनीति का एक विवादास्पद चेहरा रहे हैं। उन पर आपराधिक गतिविधियों से लेकर राजनैतिक गठजोड़ तक कई आरोप लगते रहे हैं। छंगूर बाबा जैसा धार्मिक नेता जब अतीक के साथ मंच साझा करता है, तो यह सवाल उठता है कि क्या बाबा ने अपने धार्मिक प्रभाव का इस्तेमाल किसी खास वोट बैंक को प्रभावित करने के लिए किया? यह सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि धार्मिक व्यक्तित्व के राजनीति में उतरने पर आम जनमानस में भ्रम की स्थिति बनती है।
छंगूर बाबा का प्रभाव और 2014 की रणनीति
उस समय अतीक अहमद को यह भरोसा था कि छंगूर बाबा जैसे व्यक्ति उनके लिए जनसमर्थन जुटा सकते हैं। बाबा के अनुयायी बड़ी संख्या में हैं, खासकर मुस्लिम समाज में, और अतीक की टीम ने इसी प्रभाव का फायदा उठाने की रणनीति बनाई थी। श्रावस्ती जैसे क्षेत्र में, जहां धार्मिक आस्था और प्रभाव काफी मायने रखते हैं, वहां छंगूर बाबा की मौजूदगी ने अतीक के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की।
अब क्यों हो रहा है खुलासा?
इस मामले को अब दोबारा उजागर किए जाने की वजह 2025 के संभावित चुनाव हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक जोड़-तोड़ और पुराने रिश्तों की परतें खोली जाती हैं ताकि जनता को पुराने गठजोड़ और उनके प्रभावों की याद दिलाई जा सके। इसके अलावा, छंगूर बाबा का नाम हाल ही में फिर से चर्चा में आया है, जिसके चलते उनके पुराने राजनीतिक संबंधों की पड़ताल शुरू हुई।
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