भारत के लोकतंत्र में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का पद अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह पद न केवल संवैधानिक गरिमा का प्रतीक है बल्कि देश की संसद, लोकतांत्रिक परंपरा और राजनीतिक संतुलन की भी झलक दिखाता है। हाल ही में हुए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन ने उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली है। उनके उपराष्ट्रपति बनने से न केवल सत्ता पक्ष को मजबूती मिली है बल्कि भारतीय राजनीति में एक नया अध्याय जुड़ गया है।
सी.पी. राधाकृष्णन कौन हैं?
सी.पी. राधाकृष्णन का नाम दक्षिण भारत की राजनीति में लंबे समय से जाना-पहचाना जाता है। वे भारतीय जनता पार्टी से जुड़े रहे हैं और संगठन से लेकर चुनावी राजनीति तक कई भूमिकाओं में सक्रिय रहे हैं।
वे तमिलनाडु की राजनीति से आते हैं और वहां पार्टी को खड़ा करने में उनकी अहम भूमिका रही है।
संगठनात्मक क्षमता, साफ-सुथरी छवि और जमीनी स्तर पर काम करने की आदत ने उन्हें हमेशा से अलग पहचान दी।
उनकी राजनीति केवल सत्ता तक सीमित नहीं रही बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर भी वे सक्रिय रहे हैं।
राजनीतिक सफर
सी.पी. राधाकृष्णन ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत छात्र राजनीति और संगठनात्मक कार्यों से की थी। धीरे-धीरे वे राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी के लिए महत्वपूर्ण चेहरा बन गए।
दो बार वे लोकसभा सांसद रह चुके हैं और संसद में उनका योगदान उल्लेखनीय माना जाता है।
वे तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं और राज्य में पार्टी को संगठित करने में बड़ी भूमिका निभाई।
राजनीति के साथ-साथ उन्होंने समाजसेवा और युवाओं के बीच काम करने पर भी जोर दिया।
उनकी इस छवि ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद के लिए एक सर्वसम्मत उम्मीदवार बना दिया।
सी.पी. राधाकृष्णन की उपराष्ट्रपति चुनाव में जीत
उपराष्ट्रपति चुनाव में सी.पी. राधाकृष्णन का मुकाबला विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार, पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज बी. सुधर्शन रेड्डी से था। संसद भवन में हुए मतदान में सत्ता पक्ष को भारी बहुमत मिला और राधाकृष्णन ने बड़ी जीत दर्ज की।
एनडीए गठबंधन के सभी दलों ने उन्हें समर्थन दिया।
कई विपक्षी दलों ने मतदान से दूरी बनाई, जिससे जीत और भी आसान हो गई।
उनकी जीत भारतीय राजनीति में भाजपा की लगातार बढ़ती पकड़ को दर्शाती है।
उपराष्ट्रपति का पद और जिम्मेदारियाँ
भारत के उपराष्ट्रपति का पद केवल संवैधानिक औपचारिकता नहीं है, बल्कि इसके साथ कई गंभीर जिम्मेदारियाँ भी जुड़ी होती हैं।
- उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं।
- राज्यसभा की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाना, विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच संतुलन बनाना उनकी मुख्य जिम्मेदारी है।
- जरूरत पड़ने पर वे राष्ट्रपति के स्थान पर कार्यकारी भूमिका भी निभा सकते हैं।
इस लिहाज से देखा जाए तो सी.पी. राधाकृष्णन के सामने आने वाले समय में बड़ी चुनौतियाँ होंगी।
सी.पी. राधाकृष्णन की संसद में भूमिका
भारतीय संसद आज कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है –
तीखे राजनीतिक टकराव,
बहस के बजाय हंगामा,
और विधायी कामकाज में लगातार गिरावट।
ऐसे में उपराष्ट्रपति के रूप में राधाकृष्णन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होगी कि वे संसद की गरिमा बनाए रखें और सभी दलों को संवाद के लिए प्रेरित करें। उनके अनुभव और सादगीपूर्ण व्यवहार से उम्मीद की जा रही है कि वे इस चुनौती को बखूबी निभाएंगे।
दक्षिण भारत से राष्ट्रीय राजनीति तक
राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति बनना इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि वे दक्षिण भारत से आने वाले उन नेताओं में शामिल हैं, जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर इतनी बड़ी जिम्मेदारी मिली है।
इससे भाजपा को दक्षिण भारत में राजनीतिक मजबूती मिल सकती है।
खासकर तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में, जहां पार्टी को अब तक सीमित सफलता मिली है, उनके अनुभव का लाभ मिलेगा।
जनता की उम्मीदें
देश की जनता नए उपराष्ट्रपति से कई उम्मीदें लगाए बैठी है।
सबसे बड़ी उम्मीद यही है कि वे संसद की कार्यवाही को सुचारू और गरिमामय बनाएंगे।
युवाओं और नए मतदाताओं से संवाद स्थापित करेंगे।
भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सभी दलों के बीच सहमति और सहयोग का माहौल बनाएंगे।
इसके अलावा उनकी साफ-सुथरी छवि से लोगों को भरोसा है कि वे इस पद की मर्यादा को और ऊँचाई देंगे।
भविष्य की राह
आने वाले समय में भारत कई बड़े मुद्दों से जूझेगा –
आर्थिक सुधार,
शिक्षा और स्वास्थ्य,
बेरोजगारी और वैश्विक राजनीति से जुड़े मसले।
ऐसे में संसद की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाएगी। उपराष्ट्रपति के रूप में सी.पी. राधाकृष्णन को इन सभी विषयों पर निष्पक्ष रहकर चर्चा और बहस का मार्ग प्रशस्त करना होगा.
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