बिहार की राजनीति एक बार फिर चर्चा में है, और इस बार कारण बने हैं पूर्व आईपीएस अधिकारी आनंद मिश्रा। कुछ दिनों पहले उन्होंने प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज से अपने नाता तोड़ लिया था। अब उन्होंने इस फैसले के पीछे की असल वजह को सार्वजनिक रूप से सामने रखा है। एक पॉडकास्ट में उन्होंने खुलकर बताया कि क्यों उन्होंने एक उभरते राजनीतिक मंच को छोड़कर अलग राह चुनी।
जन सुराज से जुड़ने का उद्देश्य
आनंद मिश्रा ने जब जन सुराज से जुड़ने का फैसला किया था, तब उन्होंने इसे एक वैकल्पिक राजनीतिक प्रयास माना था जो पारंपरिक दलों की भ्रष्ट और जातिवादी राजनीति से अलग सोच रखने का दावा करता था। मिश्रा ने उम्मीद जताई थी कि इस मंच के जरिए बिहार में एक नई राजनीति की शुरुआत हो सकेगी — एक ऐसी राजनीति जो विकास, शिक्षा, रोजगार और प्रशासनिक सुधार पर केंद्रित हो।
किन कारणों से छोड़ी पार्टी?
अपने हालिया इंटरव्यू में आनंद मिश्रा ने स्पष्ट किया कि उन्होंने जन सुराज को इसलिए नहीं छोड़ा क्योंकि उन्हें प्रशांत किशोर से व्यक्तिगत रूप से कोई समस्या थी, बल्कि उन्हें पार्टी की कार्यशैली और राजनीतिक दृष्टिकोण में गंभीर खामियां नजर आईं। उन्होंने कहा कि पार्टी का आंतरिक ढांचा पारदर्शिता से दूर होता जा रहा था और जो उम्मीदें उन्होंने इस मंच से लगाई थीं, वो पूरी नहीं हो रही थीं।
उनके अनुसार, जन सुराज की विचारधारा धीरे-धीरे सिर्फ चुनावी रणनीति और मीडिया छवि तक सीमित होती जा रही थी, जबकि ज़मीनी स्तर पर कोई ठोस बदलाव नहीं दिख रहा था। आनंद मिश्रा ने यह भी कहा कि विचारधारा और कार्यशैली में अंतर होने की वजह से उन्होंने अलग राह चुनना बेहतर समझा।
प्रशांत किशोर पर टिप्पणी
जहां कई लोग आनंद मिश्रा के इस कदम को प्रशांत किशोर से मतभेद का नतीजा मान रहे थे, वहीं मिश्रा ने इस धारणा को नकारते हुए कहा कि यह फैसला किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ नहीं, बल्कि समग्र व्यवस्था के प्रति उनकी असहमति के कारण लिया गया। उन्होंने कहा, “यह बात प्रशांत किशोर की नहीं, बल्कि उस सोच की है, जो व्यवस्था बदलने का दावा तो करती है लेकिन उसी व्यवस्था का हिस्सा बनती जा रही है।”
आगे की रणनीति
जब उनसे पूछा गया कि अब आगे उनकी क्या राजनीतिक योजना है, तो आनंद मिश्रा ने साफ कहा कि फिलहाल उनका फोकस जनता से सीधा संवाद और ज़मीनी काम पर रहेगा। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि भविष्य में वे निर्दलीय रूप से चुनाव लड़ सकते हैं, जैसा कि उन्होंने पहले भी बक्सर लोकसभा सीट से किया था।
‘जन सुराज’ पर राजनीतिक विश्लेषण
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आनंद मिश्रा का यह कदम न केवल जन सुराज के लिए झटका है, बल्कि यह संकेत भी है कि बिहार की राजनीति में वैकल्पिक विचारधाराएं अभी भी अपने लिए स्थायी जमीन नहीं बना सकी हैं। जन सुराज जैसी पार्टियों को अगर लोगों का भरोसा जीतना है तो उन्हें केवल चेहरे और प्रचार से नहीं, बल्कि सच्चे और पारदर्शी नेतृत्व से आगे आना होगा।
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