बिहार की राजनीति और प्रशासनिक हलकों में एक बड़ी हलचल देखने को मिली है। राज्य के शिक्षा विभाग के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी डॉ. एस सिद्धार्थ ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। यह निर्णय न केवल प्रशासनिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके राजनीतिक निहितार्थ भी गहरे हैं। माना जा रहा है कि डॉ. सिद्धार्थ अब सक्रिय राजनीति में कदम रख सकते हैं और नवादा जिले से आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं।
29 वर्ष बिहार की प्रशासनिक सेवा का समापन
डॉ. एस सिद्धार्थ बिहार कैडर के एक वरिष्ठ और अनुभवी आईएएस अधिकारी रहे हैं। अपने 29 वर्षों के लंबे करियर में उन्होंने राज्य सरकार के कई महत्वपूर्ण विभागों में सेवा दी है, जिनमें शहरी विकास, उद्योग, योजना एवं विकास, शिक्षा, और प्रशासनिक सुधार जैसे सेक्टर शामिल हैं। उनकी कार्यशैली को हमेशा तेज, पारदर्शी और नीति-निर्माण में सक्रिय माना गया है। शिक्षा विभाग में उनकी भूमिका को विशेष रूप से सराहा गया, जहां उन्होंने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर पर जोर दिया।
इस्तीफे के पीछे छिपा राजनीतिक संकेत?
डॉ. सिद्धार्थ का अचानक इस्तीफा लेना सिर्फ प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं मानी जा रही। सूत्रों के अनुसार, वह अब राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाना चाहते हैं और इसके लिए नवादा से विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं। इस बात को और बल तब मिला जब उनके करीबी सूत्रों ने बताया कि वह पिछले कुछ महीनों से जनसंपर्क बढ़ा रहे थे और नवादा में सामाजिक कार्यों में सक्रियता दिखा रहे थे।
नवादा सीट और संभावनाएं
नवादा बिहार की एक प्रमुख विधानसभा सीट है, जहां पर जातीय और विकासात्मक समीकरण अहम भूमिका निभाते हैं। डॉ. सिद्धार्थ, जो स्वयं नवादा से जुड़े हुए माने जाते हैं, वहां की जमीनी हकीकत को बेहतर तरीके से समझते हैं। शिक्षा और प्रशासनिक सुधारों में उनके योगदान को देखते हुए वे वहां एक ‘क्लीन इमेज वाले उम्मीदवार’ के रूप में सामने आ सकते हैं। अभी यह साफ नहीं है कि वे किसी राजनीतिक दल से जुड़ेंगे या स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरेंगे, लेकिन इतना तय है कि उनका चुनावी मैदान में आना कई समीकरणों को प्रभावित करेगा।
नीति-निर्माण में अहम भूमिका
डॉ. सिद्धार्थ को केवल एक प्रशासनिक अधिकारी नहीं, बल्कि एक नीति निर्माता के तौर पर भी जाना जाता है। बिहार में शहरी विकास मॉडल, शिक्षा में टेक्नोलॉजी का एकीकरण, और राजस्व सुधारों में उनकी नीतियां मील का पत्थर मानी जाती हैं। उनका मानना रहा है कि प्रशासन को केवल फाइलों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि ज़मीनी स्तर पर बदलाव लाने में उसकी भूमिका सबसे अहम होनी चाहिए।
बिहार की आगे की राह
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि डॉ. एस सिद्धार्थ की राजनीतिक पारी कैसी होती है। यदि वह चुनाव लड़ते हैं और जीत दर्ज करते हैं, तो यह नौकरशाही से राजनीति की ओर एक और सफल संक्रमण का उदाहरण बन सकता है। बिहार में पूर्व में भी कई आईएएस अधिकारियों ने राजनीति में कदम रखा है, लेकिन डॉ. सिद्धार्थ का अनुभव, नीतिगत समझ और साफ-सुथरी छवि उन्हें अलग बनाती है।
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