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Wed. Jul 23rd, 2025

संसद का मॉनसून सत्र 2025 आखिरकार समाप्त हो गया। यह सत्र राजनीतिक गहमागहमी, तीखी बहसों, विपक्ष के विरोध प्रदर्शन और महत्वपूर्ण विधेयकों की पारित प्रक्रिया का गवाह बना। देश की लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए यह सत्र कई मायनों में अहम रहा। जहां एक ओर सरकार ने कुछ प्रमुख विधेयक पारित कराने में सफलता पाई, वहीं दूसरी ओर विपक्ष ने कई बार सदन की कार्यवाही को बाधित कर अपना विरोध दर्ज कराया।

क्या है मॉनसून सत्र?

मॉनसून सत्र भारतीय संसद के तीन प्रमुख सत्रों में से एक होता है, जो आमतौर पर जुलाई से अगस्त तक आयोजित होता है। यह सत्र मानसून के मौसम में होता है और इसमें देश के सामाजिक-आर्थिक मसलों, बजट संशोधनों और विधायी कार्यों पर चर्चा होती है।

सत्र की शुरुआत और प्रमुख एजेंडा

मॉनसून सत्र 2025 की शुरुआत राष्ट्रपति के अभिभाषण से हुई, जिसमें सरकार की उपलब्धियों और आगामी योजनाओं का उल्लेख किया गया। इस सत्र के लिए सरकार ने 18 विधेयकों की सूची जारी की थी, जिसमें से कई विवादास्पद और चर्चित रहे, जैसे:

नागरिक डेटा सुरक्षा विधेयक

कृषि सुधार संशोधन विधेयक

यूनिफॉर्म सिविल कोड पर चर्चा

चुनाव आयोग सुधार विधेयक

तीखा रहा विपक्ष का विरोध

इस बार का सत्र विपक्ष के तीखे तेवरों से भरा रहा। खासकर नागरिक डेटा सुरक्षा विधेयक और चुनाव आयोग से संबंधित संशोधन पर विपक्ष ने जमकर विरोध किया। कई बार तो लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही को स्थगित करना पड़ा। विपक्ष ने सरकार पर लोकतंत्र की अनदेखी करने और विधेयकों को जल्दबाज़ी में पास कराने का आरोप लगाया।

कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे दलों ने कई मुद्दों पर एकजुट होकर सरकार को घेरने की कोशिश की। खासकर महंगाई, बेरोज़गारी और चीन से जुड़े सीमा विवाद पर भी सवाल उठाए गए।

सरकार की उपलब्धियाँ

हालांकि भारी हंगामे के बावजूद, सरकार कुछ अहम विधेयक पारित कराने में सफल रही। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण था नागरिक डेटा सुरक्षा विधेयक, जिसे डिजिटल इंडिया के दृष्टिकोण से जरूरी बताया गया। इसके अलावा, कृषि बीमा योजना संशोधन और रेलवे आधुनिकीकरण निधि से जुड़े प्रस्ताव भी पारित हुए।

सरकार ने इस सत्र में यह दावा किया कि वह ‘न्यायिक सुधारों’ और ‘विकासशील भारत’ की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रही है।

सदन की कार्यवाही और अनुपस्थिति

सत्र के दौरान एक और चिंता की बात सांसदों की उपस्थिति रही। कई बार दोनों सदनों में आवश्यक कोरम नहीं बन पाया। लोकसभा की कुल कार्यवाही में औसतन 68% और राज्यसभा में लगभग 62% उपस्थिति रही। विशेषज्ञों का मानना है कि जनप्रतिनिधियों की यह लापरवाही जनता के विश्वास के साथ धोखा है।

विश्लेषण: क्या यह सत्र सफल रहा?

यदि इस मॉनसून सत्र का राजनीतिक विश्लेषण किया जाए, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि यह सत्र विवादों और टकरावों से भरा रहा। हालांकि सरकार ने कुछ ज़रूरी विधेयक पारित कराए, लेकिन विपक्ष के साथ संवाद की कमी और सदन की गरिमा को चोट पहुंचाने वाले घटनाक्रमों ने इसकी प्रभावशीलता पर सवाल खड़े किए।

लोकतंत्र का सौंदर्य संवाद में है, और जब संवाद ठप हो जाए, तो संसद की भूमिका भी अधूरी रह जाती है।

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