राजनीति में अक्सर घटनाओं से ज्यादा उन पर आने वाली प्रतिक्रियाएं सुर्खियां बन जाती हैं। हाल ही में ऐसा ही नजारा तब देखने को मिला जब नव-निर्वाचित उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन के शपथ ग्रहण समारोह में कांग्रेस नेता राहुल गांधी शामिल नहीं हुए। इस अनुपस्थिति को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राहुल गांधी पर तीखा हमला बोला और उन पर संविधान व लोकतंत्र से नफरत करने का आरोप लगाया। दूसरी ओर, कांग्रेस ने पलटवार करते हुए भाजपा पर ही संविधान को कमजोर करने का आरोप मढ़ दिया। इस पूरे घटनाक्रम ने भारतीय राजनीति में नए सिरे से बहस छेड़ दी है।
शपथ ग्रहण समारोह : भाजपा का आरोप: राहुल गांधी को लोकतंत्र से नफरत
भाजपा प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि राहुल गांधी लगातार ऐसे कदम उठाते हैं, जिनसे साफ जाहिर होता है कि उन्हें न तो भारतीय संविधान से लगाव है और न ही लोकतांत्रिक मूल्यों से। उनका कहना था कि उपराष्ट्रपति देश के सर्वोच्च संवैधानिक पदों में से एक हैं और शपथ ग्रहण समारोह में शामिल न होना लोकतंत्र का अपमान है।
भाजपा ने राहुल गांधी की गैरमौजूदगी को केवल व्यक्तिगत निर्णय नहीं, बल्कि कांग्रेस की सोच बताया। पार्टी का तर्क है कि राहुल और उनकी पार्टी लोकतांत्रिक परंपराओं के बजाय केवल राजनीतिक स्वार्थों को प्राथमिकता देती है।
कांग्रेस का जवाब: भाजपा खुद कर रही संविधान पर हमला
भाजपा के आरोपों का जवाब देते हुए कांग्रेस ने कहा कि विपक्षी नेताओं का किसी समारोह में शामिल होना या न होना व्यक्तिगत निर्णय है, जिसे लोकतंत्र विरोधी मानसिकता से जोड़ना अनुचित है। कांग्रेस नेता उदित राज ने पलटवार करते हुए भाजपा पर ही गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि भाजपा ने बीते कुछ सालों में लगातार ऐसे कदम उठाए हैं, जिनसे संविधान की आत्मा को कमजोर करने की कोशिश हुई है।
कांग्रेस का कहना है कि भाजपा की सरकार ने संस्थाओं पर नियंत्रण स्थापित करने, न्यायपालिका को प्रभावित करने और विपक्ष की आवाज दबाने जैसे कई कार्य किए हैं। ऐसे में भाजपा को लोकतंत्र की चिंता जताने का कोई अधिकार नहीं है।
विपक्ष और सत्ता पक्ष का टकराव
इस मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस के बीच जो आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हुआ है, वह भारत की राजनीति की जानी-पहचानी तस्वीर है। सत्ता पक्ष जहां खुद को संविधान और लोकतंत्र का रक्षक बताता है, वहीं विपक्ष उस पर लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करने के आरोप लगाता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी की अनुपस्थिति का इस्तेमाल भाजपा ने विपक्ष की नीयत पर सवाल खड़े करने के लिए किया, जबकि कांग्रेस इसे एक सामान्य घटना मानकर भाजपा के बड़े आरोपों को पाखंड बताती रही।
शपथ ग्रहण समारोह का महत्व
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति जैसे पद केवल संवैधानिक ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र की गरिमा का प्रतीक भी हैं। शपथ ग्रहण समारोहों में शामिल होना अक्सर सभी दलों के लिए औपचारिक परंपरा माना जाता है। विपक्षी नेताओं की मौजूदगी को लोकतंत्र की परिपक्वता का हिस्सा माना जाता है।
ऐसे में राहुल गांधी जैसे बड़े नेता का अनुपस्थित रहना स्वाभाविक रूप से सवाल उठाता है। हालांकि, इसे लोकतंत्र से नफरत का प्रतीक मानना या फिर इसे राजनीतिक विचारधारा से जोड़ना कुछ हद तक अतिशयोक्ति भी माना जा सकता है।
जनता की नजर में राजनीति
जनता की नजर में यह पूरा विवाद एक और राजनीतिक खींचतान से ज्यादा कुछ नहीं लगता। आम नागरिकों के लिए असली मुद्दे रोज़मर्रा की जिंदगी से जुड़े होते हैं—महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य। लेकिन जब राजनीतिक पार्टियां इस तरह के मुद्दों पर भिड़ती हैं, तो जनता में यह संदेश जाता है कि नेता असल समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए ऐसे विवादों को हवा दे रहे हैं।
सोशल मीडिया पर भी इस घटना को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। भाजपा समर्थकों ने राहुल गांधी की अनुपस्थिति को असंवेदनशील बताया, जबकि कांग्रेस समर्थकों ने भाजपा पर सवाल उठाया कि जब असल मुद्दों पर बहस होनी चाहिए, तब ऐसे छोटे मामलों को क्यों बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है।
संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा
यह पूरा विवाद एक बार फिर से इस बात को रेखांकित करता है कि भारत में संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा को बनाए रखना कितना जरूरी है। विपक्ष का काम है सत्ता पक्ष की नीतियों पर सवाल उठाना, लेकिन संवैधानिक पदों का सम्मान करना भी उतना ही आवश्यक है।
राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर विपक्षी नेता ऐसे मौकों पर शामिल नहीं होते, तो इससे लोकतंत्र की छवि कमजोर होती है। वहीं सत्ता पक्ष को भी यह समझना होगा कि विपक्ष की आलोचना को देशविरोधी या लोकतंत्र विरोधी ठहराना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
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