प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मोतिहारी रैली से ठीक पहले बिहार की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए उन्हें उनका 11 साल पुराना ‘चाय’ वाला वादा याद दिलाया। तेजस्वी का कहना है कि 11 साल पहले पीएम मोदी ने मोतिहारी में एक चीनी मिल खोलने का वादा किया था और कहा था कि वह वहां की बनी चीनी से बनी चाय पीने आएंगे – मगर आज तक न मिल चालू हुई, न चाय परोसी गई।
क्या था वो ‘चाय’ वाला वादा?
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान, नरेंद्र मोदी एक रैली के दौरान मोतिहारी पहुंचे थे। तब उन्होंने स्थानीय जनता से कहा था कि मोतिहारी में बंद पड़ी चीनी मिल को पुनः चालू किया जाएगा, जिससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और स्थानीय किसानों को लाभ मिलेगा। उन्होंने मंच से यह भी कहा था कि “जब मिल की चीनी से बनी चाय तैयार होगी, तो मैं यहां आकर वह चाय पियूंगा।”
यह बयान उस समय खूब चर्चा में रहा और लोगों में उम्मीद जगी कि वर्षों से जंग खा रही चीनी मिलें अब एक बार फिर से चलेंगी। लेकिन आज, 2025 में, तेजस्वी यादव ने यह सवाल उठाया कि 11 साल बीतने के बावजूद वो वादा अब तक अधूरा क्यों है?
तेजस्वी यादव का हमला
मोतिहारी में प्रधानमंत्री की नई रैली से ठीक पहले तेजस्वी यादव ने मीडिया से बात करते हुए कहा:
“प्रधानमंत्री जी ने 11 साल पहले कहा था कि वे मोतिहारी की चीनी से बनी चाय पीने आएंगे। न चाय बनी, न मिल चली। अब वो किस मुंह से मोतिहारी आ रहे हैं?”
तेजस्वी ने यह बयान केवल राजनीतिक व्यंग्य नहीं बल्कि स्थानीय मुद्दों को उठाने के उद्देश्य से दिया। उनका कहना है कि बिहार की जनता को बार-बार केवल घोषणाएं और जुमले सुनाए जाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर बदलाव नजर नहीं आता।
चीनी मिलों की जमीनी हकीकत
बिहार के पूर्वी चंपारण ज़िले में कई दशक पहले तक कई सक्रिय चीनी मिलें थीं। किसानों की आय, रोज़गार, और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा इन्हीं मिलों पर निर्भर करता था। लेकिन 1990 के दशक के बाद इन मिलों की हालत खराब होती गई और अंततः अधिकांश मिलें बंद हो गईं। पुनर्जीवन की तमाम घोषणाएं हुईं, परंतु प्राइवेट निवेशकों की उदासीनता और सरकारी प्रक्रियाओं की जटिलता के चलते अभी तक कोई ठोस पहल नहीं हो सकी।
सियासत गरम, जनता भ्रमित – तेजस्वी
राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह मुद्दा बिहार चुनावों से पहले एक बड़ा हथियार बन सकता है। तेजस्वी यादव जनता को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री द्वारा किए गए वादे केवल दिखावा थे, जबकि भाजपा के नेता इसे पुरानी सरकारों की नाकामी बताते हैं।
वहीं आम जनता के बीच एक बार फिर यह सवाल उठने लगा है – “क्या वाकई चीनी मिल कभी दोबारा चलेगी?” किसान, मजदूर और युवा – सभी इस सवाल के जवाब का इंतजार कर रहे हैं।
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