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Tue. Oct 14th, 2025

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में संगठनात्मक फेरबदल की सुगबुगाहट तेज हो गई है। सोमवार से शुरू हो रहे शारदीय नवरात्र से पहले पार्टी उन राज्यों में नए प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करने की तैयारी में है, जहां यह पद लंबे समय से खाली या कार्यकारी व्यवस्था के तहत चल रहा है। बुधवार देर शाम भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के वरिष्ठ नेताओं की एक महत्वपूर्ण बैठक में इस पर सहमति बनी कि चुनावी दृष्टि से अहम इन राज्यों में जल्द से जल्द नए प्रदेश अध्यक्षों की घोषणा की जाए।

सात राज्यों में नए अध्यक्ष की तलाश

फिलहाल उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, मुंबई, कर्नाटक, गुजरात और त्रिपुरा में नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति का इंतजार है। इनमें उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्य न सिर्फ लोकसभा बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों की दृष्टि से भी निर्णायक हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, संगठनात्मक संतुलन को ध्यान में रखते हुए सभी राज्यों में ऐसे चेहरे तलाशे जा रहे हैं, जो न केवल जातीय समीकरण साध सकें बल्कि आगामी चुनावों में कार्यकर्ताओं को भी उत्साहित करें।

बैठक में बना रोडमैप

दिल्ली में हुई इस अहम बैठक में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, संगठन महामंत्री बीएल संतोष और आरएसएस के कई वरिष्ठ पदाधिकारी मौजूद थे। चर्चा में तय हुआ कि नवरात्र के पहले ही चरण में नए अध्यक्षों के नाम पर अंतिम मुहर लगाई जाएगी। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से हरी झंडी मिलने के बाद ही आधिकारिक घोषणा होगी। पार्टी चाहती है कि इन नियुक्तियों के बाद कार्यकर्ता नवरात्र जैसे शुभ समय में संगठन को नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ाएं।

उत्तर प्रदेश: सबसे अहम नियुक्ति

उत्तर प्रदेश भाजपा के लिए सबसे बड़ा संगठनात्मक ढांचा है। यहां 2027 के विधानसभा चुनाव के साथ-साथ 2029 की लोकसभा तैयारी को ध्यान में रखते हुए नया अध्यक्ष चुना जाएगा। चर्चा है कि पश्चिमी यूपी और पिछड़ा वर्ग से आने वाले नेता को जिम्मेदारी दी जा सकती है ताकि जातीय समीकरण संतुलित रहे। मौजूदा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी का कार्यकाल पूरा हो चुका है, और अब पार्टी को नया चेहरा देना तय माना जा रहा है।

अध्यक्ष को लेकर हरियाणा और दिल्ली में नजर

हरियाणा में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में वहां नए अध्यक्ष की नियुक्ति चुनावी दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। पार्टी चाहती है कि अध्यक्ष ऐसा हो जो जाट और गैर-जाट दोनों वर्गों को साध सके। दिल्ली में भी नगर निगम चुनाव और 2025 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए संगठन को नई रणनीति के साथ तैयार करना जरूरी है। राजधानी में स्थानीय मुद्दों और आम आदमी पार्टी से सीधी टक्कर को देखते हुए पार्टी युवा और आक्रामक नेतृत्व पर विचार कर रही है।

मुंबई और कर्नाटक में अध्यक्ष का समीकरण

मुंबई में भाजपा-शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी (अजित पवार गुट) के साथ मिलकर सरकार चला रही है। यहां स्थानीय स्तर पर पार्टी को अपना संगठन मजबूत करने की जरूरत है। नए अध्यक्ष का चयन इस गठबंधन में तालमेल और मराठी बनाम गैर-मराठी राजनीति को ध्यान में रखकर होगा।
कर्नाटक में हालिया विधानसभा चुनावों में हार के बाद भाजपा पुनर्गठन की प्रक्रिया में है। दक्षिण भारत में भाजपा की पकड़ मजबूत करने के लिए यहां पर एक ऐसा चेहरा लाने की तैयारी है, जो लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय को साथ ला सके।

अध्यक्ष पद के लिए गुजरात और त्रिपुरा भी अहम

गुजरात भाजपा का गढ़ है, लेकिन 2027 के विधानसभा चुनावों और 2029 की लोकसभा रणनीति को ध्यान में रखते हुए संगठनात्मक बदलाव जरूरी माना जा रहा है। यहां नए अध्यक्ष को युवा और अनुभवी कार्यकर्ताओं के बीच संतुलन साधने की जिम्मेदारी दी जा सकती है।
पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में भाजपा के लिए यह नियुक्ति इसलिए अहम है क्योंकि यहां वामपंथी दलों और तृणमूल कांग्रेस से मुकाबला लगातार तेज हो रहा है। 2028 के विधानसभा चुनाव और उससे पहले स्थानीय निकाय चुनाव को देखते हुए पार्टी एक ऐसा चेहरा चाहती है, जो आदिवासी और बंगाली दोनों वोट बैंक को साध सके।

चुनावी रणनीति से जुड़ा कदम

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नवरात्र जैसे शुभ समय में बड़े संगठनात्मक बदलाव कर भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को सकारात्मक संदेश देना चाहती है। साथ ही, 2026 में कई राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2027-29 के लोकसभा व राज्य चुनावों के मद्देनजर यह कदम समय रहते तैयारी का हिस्सा है। नए अध्यक्षों के आने से राज्य इकाइयों को नई दिशा और कार्यकर्ताओं में जोश भरने की उम्मीद है।

संघ की भूमिका

आरएसएस की इस पूरी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका बताई जा रही है। संगठन मानता है कि मजबूत प्रदेश अध्यक्ष ही जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक, प्रत्येक राज्य से संभावित नामों की सूची संघ को पहले ही भेज दी गई थी, जिस पर चर्चा के बाद अंतिम नामों पर सहमति बनी है।

आगे की राह

भाजपा का प्रयास है कि नवरात्र के पहले दिन से ही राज्यों में नए अध्यक्ष अपने-अपने दफ्तर संभालें और कार्यकर्ताओं के साथ बैठकों का दौर शुरू करें। इससे आगामी त्योहारों और चुनावों के दौरान पार्टी को नई गति मिल सकती है।
कुल मिलाकर, यह संगठनात्मक बदलाव भाजपा की आगामी चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा माना जा रहा है। सात राज्यों में नए प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति से न केवल कार्यकर्ताओं को नई ऊर्जा मिलेगी, बल्कि विपक्ष को भी एक मजबूत संदेश जाएगा कि भाजपा हर स्तर पर चुनावी मैदान में पूरी तैयारी के साथ उतर रही है।

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