उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है जिसे ‘लव ट्रैप’ केस के नाम से जाना जा रहा है। इस मामले में पुलिस ने दो आरोपियों – फिरोज और कासिम – को गिरफ्तार कर लिया है। आरोपियों पर मुस्लिम समुदाय की महिलाओं और छात्राओं के झूठे, भ्रामक और आपत्तिजनक वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट करने का आरोप है। मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस और खुफिया एजेंसियां अब इस पूरे नेटवर्क की तह तक जाने की कोशिश कर रही हैं।
क्या है मेरठ का मामला ?
मेरठ के विभिन्न कॉलेज और भीड़भाड़ वाले इलाकों में कुछ महीनों से सोशल मीडिया पर ऐसी वीडियो क्लिप वायरल हो रही थीं जिनमें मुस्लिम समुदाय की युवतियों को तथाकथित ‘लव ट्रैप’ में दिखाया गया था। इन वीडियो में लड़कियों की पहचान छिपाकर उन्हें एक खास एजेंडे के तहत बदनाम करने की कोशिश की जा रही थी।
किस तरह किया गया वीडियो का निर्माण?
पुलिस जांच में सामने आया है कि आरोपी फिरोज और कासिम, जानबूझकर ऐसे स्थानों का चयन करते थे जहां युवतियां अकेली होती थीं – जैसे कि कोचिंग सेंटर के बाहर, बाजार, बस स्टैंड, आदि। वे छुपे कैमरे या मोबाइल के ज़रिए वीडियो शूट करते और फिर उन्हें इस तरह एडिट करते कि लगे जैसे युवतियां ‘लव ट्रैप’ का हिस्सा हों।
इसके बाद इन वीडियो को अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स – जैसे कि Facebook, Instagram, X (पूर्व में Twitter), और YouTube Shorts – पर अपलोड किया जाता था। हर वीडियो के साथ एक भड़काऊ और झूठा कैप्शन जोड़ा जाता था, जैसे:
“देखिए कैसे हमारी बहनें लव जिहाद में फंस रही हैं”,
या
“मुस्लिम लड़कियां कैसे धर्म से भटक रही हैं, देखिए सच्चाई”।
गिरफ्तार आरोपी कौन हैं?
पुलिस ने जिन दो आरोपियों को गिरफ्तार किया है, उनके नाम फिरोज और कासिम हैं। दोनों की उम्र 25-30 वर्ष के बीच है और वे पहले भी सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ फैलाने के आरोप में पुलिस के रडार पर थे।
मेरठ पुलिस की पूछताछ में क्या हुआ खुलासा?
पुलिस पूछताछ के दौरान दोनों आरोपियों ने कई चौंकाने वाली बातें कबूल की हैं:
- विदेशी फंडिंग:
आरोपियों ने बताया कि उन्हें इन वीडियो को पोस्ट करने और वायरल करवाने के लिए विदेश से फंडिंग मिलती थी। यह फंडिंग डिजिटल वॉलेट और बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी के माध्यम से होती थी, जिससे ट्रैकिंग मुश्किल हो जाती है। - सोशल मीडिया अकाउंट्स की एक पूरी टीम:
पूछताछ में यह भी सामने आया कि इन दोनों के पास 8 से ज्यादा फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट थे। वे कई बार VPN का इस्तेमाल करते थे ताकि उनकी लोकेशन ट्रैक न की जा सके। - एक बड़ी साजिश का हिस्सा:
पुलिस को संदेह है कि ये दोनों सिर्फ मोहरे हैं और इस पूरे नेटवर्क के पीछे एक संगठित गिरोह काम कर रहा है, जिसका उद्देश्य सांप्रदायिक तनाव फैलाना है।
फॉरेंसिक जांच और सबूत
फिरोज के मोबाइल से पुलिस को चार और युवतियों के वीडियो मिले हैं, जिन्हें अभी तक वायरल नहीं किया गया था। पुलिस ने दोनों आरोपियों के मोबाइल फॉरेंसिक जांच के लिए भेज दिए हैं ताकि यह पता चल सके कि:
- वीडियो कब और कहां शूट किए गए थे
- कौन-कौन लोग इनसे जुड़े हुए हैं
- सोशल मीडिया पर किन अकाउंट्स से वीडियो पोस्ट किए गए
- किस-किस से मैसेज या पैसे का लेन-देन हुआ है
सोशल मीडिया का ज़हरीला इस्तेमाल
इस मामले ने एक बार फिर सोशल मीडिया की निगरानी और नियमों की कमजोरियों को उजागर किया है। जहां एक ओर सोशल मीडिया विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम है, वहीं दूसरी ओर इसका दुरुपयोग कर समाज में नफरत फैलाना एक खतरनाक चलन बनता जा रहा है।
पुलिस और प्रशासन की सख्त कार्रवाई
मेरठ पुलिस ने इस पूरे मामले को आईटी एक्ट, महिला सम्मान की रक्षा के कानूनों, और फर्जीवाड़े की धाराओं के अंतर्गत दर्ज किया है। पुलिस ने यह भी संकेत दिया है कि इस मामले में एनआईए (NIA) या एटीएस (ATS) जैसी एजेंसियों को भी शामिल किया जा सकता है अगर अंतरराष्ट्रीय फंडिंग के और पुख्ता सबूत मिलते हैं।
मेरठ समुदाय और छात्रों में डर का माहौल
इस पूरे प्रकरण से मुस्लिम छात्राओं और उनके परिवारों में डर और चिंता का माहौल बना हुआ है। कई छात्राओं ने कॉलेज जाना तक बंद कर दिया है। अभिभावकों ने प्रशासन से मांग की है कि उनके बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए और इस तरह की घटनाओं पर रोक लगाई जाए।
मीडिया और समाज की भूमिका
इस समय समाज की जिम्मेदारी बनती है कि वह बिना तथ्यों की पुष्टि किए किसी भी वायरल वीडियो या संदेश को साझा न करे। मीडिया को भी चाहिए कि वह ऐसी संवेदनशील खबरों को बिना सनसनी फैलाए, तथ्यात्मक रूप से प्रस्तुत करे।