लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा आज अपने तीसरे दिन पर है, जिसे संध्या अर्घ्य के रूप में मनाया जाता है। यह दिन पूरे चार दिवसीय छठ पर्व का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र दिन माना जाता है। आज के दिन व्रती महिलाएं और पुरुष नदी, तालाब या जलाशय के किनारे डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
छठ पूजा का धार्मिक महत्व
छठमहापर्व भगवान सूर्य देव और माता छठी मइया को समर्पित है। इस व्रत का उद्देश्य सूर्य देव की उपासना करके परिवार की सुख-समृद्धि और संतान के दीर्घायु जीवन की कामना करना है। यह पर्व उत्तर भारत, विशेषकर बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के तराई क्षेत्रों में अत्यंत श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
छठ पूजा न केवल एक धार्मिक पर्व है बल्कि यह शुद्धता, संयम और आस्था का प्रतीक भी है। इस व्रत को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना गया है क्योंकि इसमें व्रती 36 घंटे का निर्जला उपवास रखते हैं और बिना पानी या भोजन ग्रहण किए भगवान सूर्य की आराधना करते हैं।
छठ पूजा 2025 की तिथियाँ
- नहाय-खाय: 25 अक्टूबर 2025
- खरना: 26 अक्टूबर 2025
- संध्या अर्घ्य: 27 अक्टूबर 2025
- उषा अर्घ्य और पारण: 28 अक्टूबर 2025
पंचांग के अनुसार, षष्ठी तिथि 27 अक्टूबर को सुबह 06:04 बजे प्रारंभ होकर 28 अक्टूबर को सुबह 07:59 बजे समाप्त होगी। इस दिन सूर्यास्त का समय शाम 5:40 बजे रहेगा, जब व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगे।
संध्या अर्घ्य का महत्व
छठ पूजा के तीसरे दिन संध्या अर्घ्य दिया जाता है। इस समय श्रद्धालु परिवार सहित घाटों पर पहुंचकर पानी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं। अर्घ्य के समय सूर्य की अंतिम किरणों के साथ व्रती अपने जीवन के तमाम दुखों, परेशानियों और बुराइयों को त्यागने का संकल्प लेते हैं।
यह अर्घ्य कृतज्ञता और श्रद्धा का प्रतीक होता है, क्योंकि सूर्य देव को ही जीवन, ऊर्जा और समृद्धि का आधार माना गया है। कहा जाता है कि सूर्य की किरणें जब व्रती के प्रसाद और जल से गुजरती हैं, तो पूरा वातावरण शुद्ध और सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है।
उगते सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व
महापर्व का अंतिम दिन यानी चौथा दिन सबसे भावनात्मक और आनंदपूर्ण होता है। इसे उषा अर्घ्य कहा जाता है। इस दिन व्रती उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करते हैं। यह प्रतीकात्मक रूप से नए आरंभ, आशा और जीवन की ऊर्जा का संकेत देता है। 28 अक्टूबर की सुबह व्रती उगते सूर्य को जल अर्पित करेंगे और इसके बाद प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारण करेंगी।
छठ पूजा की पूजा सामग्री और विधि
छठ पूजा के दौरान पूजा के लिए कुछ पारंपरिक वस्तुएं अत्यंत आवश्यक होती हैं —
- दो बांस की टोकरी (पथिया और सूप)
- डगरी, कलश, पुखार, सरवा, पोनिया आदि पूजन के बर्तन
- ठेकुआ, मखाना, गन्ना, अक्षत, सुपारी, अंकुरी अनाज, भुसवा
- पाँच प्रकार के फल — केला, नारियल, नाशपाती, शरीफा और डाभ
- पाँच रंग की मिठाई, जिसे पंचमेरी मिठाई कहते हैं
पूजा से पहले व्रती इन सभी वस्तुओं को बड़े स्नेह और श्रद्धा के साथ सजाते हैं। प्रसाद वाली टोकरी पर सिंदूर और पिठार का लेपन किया जाता है। शाम को जब सूर्य अस्त होने लगता है, तब व्रती घाट पर पहुंचते हैं और डूबते सूर्य को बांस या पीतल की टोकरी या सूप में जल और प्रसाद अर्पित करते हैं।
व्रत की विशेषता और कठिनाई
छठ पूजा का व्रत अत्यंत कठोर होता है। व्रती 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखते हैं और इस दौरान उनका मन पूरी तरह से भगवान सूर्य और छठी मैया की भक्ति में लीन रहता है। इस व्रत को करने के लिए व्यक्ति को पूर्ण शुद्धता, मानसिक दृढ़ता और आत्मसंयम की आवश्यकता होती है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
छठ पूजा का वैज्ञानिक महत्व भी है। सूर्य की किरणें मानव शरीर को विटामिन D प्रदान करती हैं और शरीर को ऊर्जा देती हैं। जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने से शरीर और मन दोनों को शांति और संतुलन प्राप्त होता है।
लोक परंपरा और सांस्कृतिक रंग
छठ पूजा के दौरान लोकगीतों की मधुर ध्वनियाँ, घाटों की सजावट, और दीयों की रौशनी पूरे वातावरण को दिव्यता से भर देती है। महिलाएँ पारंपरिक गीत जैसे “कांचे हांथ जोड़े छठी मईया”, “छठी मइया आइल बाड़ी घाटे पर” गाती हैं। बच्चे, बुजुर्ग, युवा—सभी इस पर्व में एक साथ भाग लेते हैं।
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