चक्रवात Cyclone Ditwah की तबाही से जूझ रहे श्रीलंका के लिए भारत ने आज फिर मानवीय मदद भेजी है। हवाई मार्ग से भेजी गई राहत सामग्री में एक बनियादी पुल (बेली ब्रिज), 500 से अधिक जल शोधन (water‑purification) इकाइयां, और एक डिजिटल “आपदा-प्रतिक्रिया टूलकिट” शामिल है। इस सहायता अभियान को Operation Sagar Bandhu के तहत त्वरित रूप से भेजा गया।
आपदा की वजह और श्रीलंका की तबाही – भारत
- श्रीलंका में Cyclone Ditwah के तेज़ तूफान, लगातार भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन ने देश के कई भागों को प्रभावित किया।
- सरकार ने कुल 25 जिलों में से 22 जिलों को ‘आपदा जोन’ घोषित किया है।
- बुधवार शाम तक मृतकों की संख्या लगभग 479 हो चुकी है, और 350 से अधिक लोग लापता बताए जा रहे हैं।
- बाढ़, जलभराव और भूस्खलन से बुनियादी ढांचा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ, जिससे कई इलाकों में सड़कों, पुलों, पेयजल सुविधाओं और बिजली-आपूर्ति को भी भारी नुकसान पहुँचा।
ऐसे में नागरिकों की बुनियादी ज़रूरतें — सुरक्षित पेयजल, आवाजाही और बचाव — लगभग ठप हो चुकी थीं।
🇮🇳 भारत की राहत पहल — बेली ब्रिज, जल इकाइयां और डिजिटल मदद
- बुधवार को एक विमान (IAF C‑17) द्वारा पूर्व-निर्मित बेली ब्रिज और 500 जल शोधन इकाइयों को श्रीलंका भेजा गया। यह पुल उन क्षेत्रों के लिए बेहद ज़रूरी है, जहाँ सड़कें टूट गई थीं या नदियाँ, नाले कट गये थे। इससे अलग-थलग पड़े इलाक़ों को जोड़ने, राहत सामग्री पहुँचाने और लोगों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने का मार्ग खुल गया।
- इससे प्रभावित इलाक़ों में जल संकट का सामना कर रहे लोगों को राहत मिलने की उम्मीद बढ़ गई है। विशेष रूप से जल शोधन इकाइयों से बाढ़-जुड़ी बीमारियों और अस्वच्छ जल से होने वाले संक्रमणों का जोखिम कम हो सकेगा।
- इस सहायता को डिजिटल कोऑर्डिनेशन के साथ भेजा गया है — बुधवार को एक वर्चुअल बैठक में, आंध्र प्रदेश के रियल‑टाइम गवर्नेंस विभाग के सचिव ने श्रीलंकाई राष्ट्रपति के डिजिटल सलाहकार व सरकारी डिजिटल‑गवर्नेंस टीम को “डिजिटल आपदा-प्रतिक्रिया टूलकिट” साझा किया। इससे राहत कार्यों, डेटा-संक्रमण, बचाव टीमों की कार्रवाई, और पुनर्निर्माण की योजना जल्दी और व्यवस्थित तरीके से हो सकेगी।
- भारत की ओर से यह राहत मदद, Operation Sagar Bandhu के तहत जारी है — जिसमें वायु, समुद्री और जमीनी सभी मार्गों से सहायता पहुंचाई जा रही है।
श्रीलंकाई राष्ट्रपति Anura Kumara Dissanayake ने इस सहायता के लिए भारत और विशेषकर Indian High Commission, Colombo का धन्यवाद किया — उन्होंने लिखा कि यह मदद हमारी साझेदारी और दोनों देशों के बीच लंबे समय से चल रही दोस्ती को दर्शाती है।
राहत की ज़रूरत और आपदा के बाद चुनौतियाँ
- बाढ़ और भूस्खलन से प्रभावित कई क्षेत्रों में नदियाँ, नाले और पुराने पुल तहस-नहस हो गये थे — जिससे राहत टीमों व निजी लोग मुश्किल से पहुँचे। ऐसे में बेली ब्रिज का बहुत बड़ा महत्व है।
- पानी की आपूर्ति और स्वच्छ पेयजल की सुविधा बुरी तरह प्रभावित हुई; जल शोधन इकाइयाँ इस संकट को कुछ हद तक कम कर सकती हैं।
- इसके अलावा, एकीकृत डिजिटल आपदा-प्रतिक्रिया प्रणाली से राहत और बचाव कामों में तेजी आने की उम्मीद है — जिससे संसाधनों का सही इस्तेमाल, प्रभावित परिवारों की पहचान, पुनर्वास और भविष्य की आपदा तैयारी बेहतर हो सकेगी।
- मगर चुनौतियाँ अभी बहुत हैं: कई इलाक़े अभी भी कटे हुए हैं, कुछ स्थानों पर सहायक सेवाएँ बहाल नहीं हो पाई हैं, और मृत्यु व लापता लोगों की संख्या बढ़ने की आशंका बनी हुई है।
क्यों है यह मदद महत्वपूर्ण — भूगोल, मानवीय रिस्ता और रणनीति- भारत
- भौगोलिक और ऐतिहासिक नज़रों से, भारत और श्रीलंका के बीच निकटता, समुद्री व सांस्कृतिक संबंध, तथा पड़ोस की अहमियत है। कठिन समय में मदद देना — ये संबंधों को मजबूत करता है।
- बाढ़, तूफान, भूस्खलन जैसी आपदाओं में समय पर राहत पहुँचाना जनहानि और रोग-प्रकोप से बचाव के लिए ज़रूरी है। भारत की इस पहल से इसमें मदद मिली है।
- डिजिटल टूलकिट साझा करके भारत ने दिखाया कि आज आपदा प्रबंधन सिर्फ भौतिक मदद तक सीमित नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी, डेटा और कोऑर्डिनेशन से जुड़े पहलुओं में भी सहयोग हो सकता है — जो दीर्घकालीन पुनर्निर्माण व तैयारियों में उपयोगी है।
- इसके अलावा, इस तरह की मदद से क्षेत्रीय भाईचारे की भावना मजबूत होती है, और अन्य देशों को भी एक उदाहरण मिलता है कि आपदा में मानवता से बढ़कर कुछ नहीं।
समाधान और निष्पक्षता
श्रीलंका में Cyclone Ditwah से उत्पन्न त्रासदी अब धीरे-धीरे अस्थिरता से राहत की ओर बढ़ रही है — और इस राह में Indian Air Force, भारतीय सरकार और संबंधित एजेंसियों की “Operation Sagar Bandhu” याचना, महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो रही है। बेली ब्रिज, जल शोधन इकाइयाँ और डिजिटल आपदा–प्रतिक्रिया टूलकिट ने संकेत दिया है कि आपदा के बाद केवल राहत नहीं, बल्कि पुनर्निर्माण, पुनर्संवाद और तैयारियों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
श्रीलंकाई जनता को अभी लंबा सफर तय करना है — लेकिन India जैसे पड़ोसी देश की मदद व वैचारिक साझेदारी से उम्मीद की किरण ज़रूर जगी है।
