पटना: बिहार की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान के तेवरों ने एनडीए के भीतर असमंजस और सियासी सरगर्मी को और बढ़ा दिया है। ताजा बयानों और गतिविधियों से संकेत मिल रहे हैं कि चिराग अब एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने की रणनीति बना सकते हैं।
चिराग पासवान का बदला हुआ रुख
हाल के हफ्तों में चिराग पासवान ने बार-बार केंद्र और राज्य की एनडीए सरकारों पर सवाल उठाए हैं। चाहे बात हो बिहार में विकास की गति की या युवाओं के लिए रोजगार की, चिराग सरकार की नीतियों और प्राथमिकताओं पर लगातार कटाक्ष करते नजर आए हैं। इससे यह स्पष्ट हो रहा है कि वह अब पूरी तरह से स्वतंत्र राजनीतिक लाइन पर चलने को तैयार हैं।
उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था, “मैं उस गठबंधन का हिस्सा नहीं बन सकता जो युवाओं को केवल वादों से बहलाता है। बिहार के लोगों को अब ठोस नेतृत्व चाहिए, दिखावटी नहीं।”
NDA के लिए खतरे की घंटी?
चिराग पासवान का यह रुख NDA के लिए चिंता का विषय बन सकता है। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी चिराग ने जदयू के खिलाफ प्रत्याशी उतारकर बड़ा राजनीतिक दांव खेला था, जिससे नीतीश कुमार की पार्टी को खासा नुकसान उठाना पड़ा था। इस बार अगर वह पूरी तरह से अलग होकर 243 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारते हैं, तो भाजपा और जदयू की रणनीति पर गहरा असर पड़ सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि चिराग का अलग जाना महागठबंधन को अप्रत्यक्ष रूप से फायदा पहुंचा सकता है, खासकर उन सीटों पर जहां एलजेपी के समर्थक वोट निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
चिराग पासवान की युवाओं और दलित मतदाताओं पर नज़र
चिराग पासवान का मुख्य फोकस युवा और दलित वोट बैंक पर है। वे अपने पिता रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए खुद को “युवा नेता” और “विकास पुरुष” के रूप में पेश कर रहे हैं। उन्होंने कई जिलों में युवाओं से सीधे संवाद किए हैं और सोशल मीडिया के माध्यम से बड़ा जनाधार बनाने की कोशिश की है।
उनका यह कहना कि “बिहार को अब ठोस विजन चाहिए, सिर्फ गठबंधन की राजनीति नहीं,” यह दर्शाता है कि वे अब खुद को सीएम उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट करने की ओर बढ़ रहे हैं।
भाजपा की प्रतिक्रिया?
भाजपा ने अब तक चिराग के बयानों पर कोई सीधा जवाब नहीं दिया है। लेकिन पार्टी के अंदरूनी हलकों में इस बात को लेकर मंथन जरूर चल रहा है कि चिराग को कैसे रोका जाए या उनसे कैसे तालमेल बनाया जाए।
कुछ सूत्रों के मुताबिक, भाजपा चाहती है कि चिराग खुलकर विरोध न करें, ताकि मतों का विभाजन न हो। वहीं, जदयू चिराग के रवैये को लेकर सख्त रुख अपना चुकी है।
आगे की रणनीति क्या होगी?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि आने वाले कुछ हफ्ते निर्णायक होंगे। अगर चिराग एनडीए से अलग राह चुनते हैं, तो बिहार की राजनीति में नया समीकरण बन सकता है। वहीं, यह भी संभव है कि वे चुनाव से ठीक पहले अपने पत्ते खोलें और अपने उम्मीदवारों की सूची जारी करें।
चिराग पासवान की पार्टी अब ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ के नारे के साथ जनता के बीच जाकर अपनी बात रखने की तैयारी में है। उनका दावा है कि पारदर्शिता, युवाओं को रोजगार, शिक्षा और महिलाओं की सुरक्षा जैसे मुद्दों को लेकर वे एक नई सियासत का आगाज करेंगे।
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