दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (डूसू) चुनाव 2025 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक बार फिर अपना परचम लहराया है। एबीवीपी ने अध्यक्ष पद समेत कुल चार में से तीन महत्वपूर्ण पदों पर जीत दर्ज कर अपनी मजबूत पकड़ को साबित किया। वहीं कांग्रेस के छात्र संगठन नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) को केवल एक पद पर संतोष करना पड़ा। इस ऐतिहासिक जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एबीवीपी के कार्यकर्ताओं को बधाई देते हुए कहा कि यह नतीजे युवाओं का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर विश्वास दर्शाते हैं।
जेपी नड्डा का बयान: युवाओं ने दिखाया विश्वास
चुनाव नतीजों पर प्रतिक्रिया देते हुए जेपी नड्डा ने कहा, “दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों ने एबीवीपी के पक्ष में मतदान कर यह स्पष्ट कर दिया है कि युवा वर्ग विकास, राष्ट्रवाद और सकारात्मक राजनीति को प्राथमिकता देता है। यह जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और नीतियों की गूंज है। देश का युवा आज जानता है कि राष्ट्रहित और शिक्षा के क्षेत्र में सशक्तिकरण किस दिशा में हो रहा है।”
उन्होंने आगे कहा कि यह जीत केवल छात्र राजनीति की जीत नहीं है, बल्कि देश के उन सभी युवाओं का संदेश है जो राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाना चाहते हैं। नड्डा ने सभी विजयी उम्मीदवारों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि एबीवीपी छात्रों के हितों के लिए निरंतर संघर्ष करती रही है और आगे भी करती रहेगी।
नड्डा – चुनावी नतीजे: कौन जीता, कौन हारा
इस बार डूसू के चुनावों में कुल चार पदों पर मुकाबला हुआ। एबीवीपी ने अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सचिव पद पर शानदार जीत हासिल की, जबकि एनएसयूआई को केवल संयुक्त सचिव का पद मिला।
अध्यक्ष: एबीवीपी उम्मीदवार ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की।
उपाध्यक्ष: यहां भी एबीवीपी ने अपने प्रतिद्वंद्वी को मात दी।
सचिव: एबीवीपी के प्रत्याशी ने करीबी मुकाबले में जीत पाई।
संयुक्त सचिव: यह पद एनएसयूआई के खाते में गया।
चुनाव आयोग के मुताबिक इस बार मतदान में छात्रों की भागीदारी उत्साहजनक रही। कुल मतदान प्रतिशत 2019 के मुकाबले अधिक रहा, जो इस बात का संकेत है कि छात्र राजनीति के प्रति युवाओं का रुझान लगातार बढ़ रहा है।
एबीवीपी की रणनीति और मुद्दे
ABVP ने इस चुनाव में छात्रों के हितों से जुड़े मुद्दों को प्रमुखता से उठाया। छात्रावासों में सीटों की कमी, फीस वृद्धि, बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर, और कैंपस में सुरक्षा जैसे विषय उनके घोषणापत्र के केंद्र में रहे। साथ ही, राष्ट्रीय मुद्दों जैसे “एक भारत श्रेष्ठ भारत”, स्वदेशी और आत्मनिर्भर भारत को भी उन्होंने अपने एजेंडे में शामिल किया।
एबीवीपी के नेताओं का कहना है कि वे अब छात्रों के लिए बेहतर सुविधाएं और पारदर्शी प्रशासन सुनिश्चित करने की दिशा में काम करेंगे। उनका दावा है कि वे डूसू की नई टीम के जरिए विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और अधिक पहचान दिलाने के लिए प्रयास करेंगे।
एनएसयूआई की प्रतिक्रिया
एनएसयूआई ने हालांकि केवल एक पद जीता, लेकिन उन्होंने कहा कि वे छात्रों की आवाज़ को मजबूती से उठाते रहेंगे। संगठन के नेताओं ने आरोप लगाया कि चुनाव के दौरान कई तरह की चुनौतियां थीं, लेकिन उनका संघर्ष जारी रहेगा। उनका कहना है कि एक पद पर जीत यह दिखाता है कि छात्रों का एक बड़ा वर्ग अब भी उनकी विचारधारा से जुड़ा है।
राजनीतिक महत्व
डूसू चुनावों का महत्व केवल छात्र राजनीति तक सीमित नहीं है। इसे देश की मुख्यधारा की राजनीति का बैरोमीटर भी माना जाता है। पिछले कई दशकों से डूसू चुनाव राष्ट्रीय राजनीति में युवा रुझानों को समझने का एक अहम जरिया रहे हैं। एबीवीपी की जीत को कई राजनीतिक विश्लेषक 2025 के आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों के संदर्भ में देख रहे हैं।
बीजेपी के लिए यह जीत उत्साहवर्धक है, क्योंकि यह युवा वर्ग में उनकी बढ़ती लोकप्रियता का संकेत देती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार द्वारा लागू की गई शिक्षा नीतियां, जैसे नई शिक्षा नीति (NEP), कौशल विकास कार्यक्रम, और स्टार्टअप इंडिया जैसी योजनाएं युवा मतदाताओं को आकर्षित कर रही हैं।
कैंपस का माहौल और छात्रों का उत्साह
मतदान के दिन दिल्ली विश्वविद्यालय का माहौल उत्सव जैसा था। सुबह से ही विभिन्न कॉलेजों में छात्रों की लंबी कतारें देखी गईं। पोस्टर, नारेबाजी और रंग-बिरंगे प्रचार ने पूरे परिसर को चुनावी रंग में रंग दिया। मतदान के दौरान छात्रों ने उत्साह से अपने पसंदीदा उम्मीदवारों के लिए वोट डाला।
चुनाव परिणाम आने के बाद एबीवीपी समर्थकों ने कैंपस में जुलूस निकाला, ढोल-नगाड़ों और आतिशबाजी के साथ जश्न मनाया। जीत के बाद विजेता उम्मीदवारों ने कहा कि वे छात्रों के भरोसे पर खरा उतरने के लिए पूरी मेहनत करेंगे।
आगे की राह
डूसू की नई टीम के सामने कई चुनौतियां हैं। कैंपस में बुनियादी ढांचे का विकास, फीस नियंत्रण, छात्रवृत्तियों का विस्तार, और महिलाओं की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर अब सभी की नजरें टिकी हैं। छात्रों का मानना है कि केवल जीत ही नहीं, बल्कि काम करने का तरीका भी मायने रखता है।
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