संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के मंच से अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचा दी है। 23 सितंबर 2025 को दिए गए अपने संबोधन में ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने अपने कार्यकाल और उसके बाद कूटनीतिक प्रयासों से सात बड़े युद्ध रुकवाए हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने कहा कि “हर कोई चाहता है कि मुझे शांति का नोबेल पुरस्कार मिले।”
उनके इस बयान ने न सिर्फ वैश्विक मंच पर हलचल पैदा की, बल्कि अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों, राजनयिकों और मीडिया का ध्यान भी अपनी ओर खींच लिया।
सात युद्ध रोकने का दावा
ट्रंप ने बिना सभी देशों के नाम लिए कहा कि उन्होंने सात अलग-अलग संघर्षों को समाप्त करने या उन्हें भड़कने से रोकने में अहम भूमिका निभाई। उनका कहना था कि अमेरिका के नेतृत्व में उन्होंने “कड़ी बातचीत, बैक-चैनल डिप्लोमेसी और दबाव” के ज़रिए कई देशों के बीच युद्ध को टाला।
हालांकि उन्होंने विस्तार से सभी संघर्षों का विवरण नहीं दिया, लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है कि ये मामले निम्नलिखित हो सकते हैं—
रूस-यूक्रेन मोर्चा (जहां 2022 के बाद से तनाव बढ़ा)
इज़रायल-हमास संघर्ष
ईरान और खाड़ी देशों के बीच बढ़ता टकराव
कोरियाई प्रायद्वीप पर परमाणु संकट
भारत-पाकिस्तान सीमा पर नियंत्रण रेखा (LoC) पर सीजफायर
अफ्रीका के कुछ हिस्सों में गृहयुद्ध रोकने के प्रयास
दक्षिण चीन सागर में बढ़ते तनाव को कूटनीतिक रास्ते से शांत करने की कोशिश
ट्रंप ने खुद कहा कि उन्होंने “अमेरिकी ताकत और बातचीत” के जरिए कई देशों को हिंसा से रोका और “वैश्विक शांति के लिए निर्णायक भूमिका निभाई”।
भारत-पाकिस्तान सीजफायर पर क्रेडिट – सात युद्ध
अपने भाषण में ट्रंप ने विशेष रूप से भारत और पाकिस्तान का ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि उनके प्रयासों से कश्मीर सीमा पर 2021 के बाद से संघर्षविराम (सीजफायर) लागू रहा, और हाल में उत्पन्न तनाव को भी उन्होंने “पर्दे के पीछे” वार्ता से कम करने में मदद की।
ट्रंप का दावा है कि उनकी “बैक-चैनल” बातचीत ने दोनों देशों को सैन्य कार्रवाई से रोका। उन्होंने कहा,
“भारत और पाकिस्तान के बीच शांति की ओर जो प्रगति हुई है, उसका श्रेय अमेरिका की डिप्लोमेसी को जाता है।”
हालांकि, भारत ने इस बयान पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। अतीत में भी भारत ने हमेशा यह कहा है कि पाकिस्तान के साथ बातचीत “द्विपक्षीय” है और किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं है।
ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर सख्त रुख
ट्रंप ने ईरान को “आतंक फैलाने वाला नंबर 1 देश” बताया। उन्होंने कहा कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम सिर्फ मध्य पूर्व के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरा है।
उन्होंने ईरान पर आरोप लगाया कि वह गुप्त रूप से हथियार-ग्रेड यूरेनियम तैयार कर रहा है।
ट्रंप ने चेतावनी दी कि यदि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने कड़ा रुख नहीं अपनाया तो यह संकट वैश्विक सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है।
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र से ईरान पर सख्त प्रतिबंध और संयुक्त कार्रवाई की अपील की।
यह बयान उस समय आया है जब ईरान और पश्चिमी देशों के बीच परमाणु समझौते (JCPOA) को पुनर्जीवित करने पर बातचीत ठप पड़ी है।
हमास और इज़रायल पर टिप्पणी – सात युद्ध
ट्रंप ने हमास द्वारा बंधक बनाए गए इज़रायली नागरिकों का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा,
“हमास को तुरंत सभी बंधकों को रिहा करना चाहिए। यह मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन है और किसी भी सभ्य समाज के लिए अस्वीकार्य है।”
उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका और उसके सहयोगी इज़रायल के साथ खड़े हैं और बंधकों की सुरक्षित वापसी के लिए हरसंभव कूटनीतिक कदम उठाएंगे।
ट्रंप ने हमास को “आतंकी संगठन” बताते हुए वैश्विक समुदाय से आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने की अपील की। उन्होंने यह संकेत भी दिया कि यदि जरूरत पड़ी तो अमेरिका “मानवीय मिशन” के तहत कदम उठा सकता है।
“मुझे शांति का नोबेल मिलना चाहिए”
अपने भाषण का सबसे चर्चित हिस्सा तब आया जब ट्रंप ने कहा,
“हर कोई कह रहा है कि मुझे शांति का नोबेल मिलना चाहिए। मैंने सात युद्ध रोके, वैश्विक शांति को बढ़ावा दिया। ऐसा कोई और नेता नहीं जिसने इतनी पहल की हो।”
ट्रंप ने दावा किया कि उनके कार्यों ने लाखों लोगों की जान बचाई और दुनिया को बड़े संघर्षों से दूर रखा।
गौरतलब है कि ट्रंप 2020 में भी नॉर्वे की संसद के एक सदस्य द्वारा नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किए गए थे, जब उन्होंने इज़रायल और अरब देशों के बीच अब्राहम समझौते कराने में मदद की थी। हालांकि, उन्हें उस समय पुरस्कार नहीं मिला।
वैश्विक प्रतिक्रियाएँ
ट्रंप के बयान के बाद दुनियाभर से अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ आईं।
अमेरिकी डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं ने इसे “राजनीतिक स्टंट” करार दिया। उनका कहना है कि कई संघर्ष उनके कार्यकाल में समाप्त नहीं बल्कि और बढ़े।
यूरोपीय संघ (EU) के कुछ राजनयिकों ने माना कि ट्रंप ने मध्य पूर्व में कुछ शांति वार्ताओं में भूमिका निभाई थी, लेकिन “सात युद्ध रोकने” का दावा अतिशयोक्ति है।
पाकिस्तान के कुछ विश्लेषकों ने कहा कि भारत-पाकिस्तान सीजफायर में अमेरिका का योगदान सीमित रहा है और यह मुख्य रूप से दोनों देशों के सैन्य नेतृत्व की पहल थी।
सोशल मीडिया पर ट्रंप का “नोबेल शांति पुरस्कार” वाला बयान तेजी से ट्रेंड करने लगा। कुछ लोग उनकी उपलब्धियों की तारीफ कर रहे हैं तो कई इसे मजाकिया अंदाज में ले रहे हैं।
भारत और वैश्विक राजनीति पर असर
भारत-पाकिस्तान सीजफायर पर ट्रंप का क्रेडिट लेने वाला बयान भारत सरकार के लिए संवेदनशील मुद्दा है। भारत हमेशा कहता रहा है कि कश्मीर और पाकिस्तान से जुड़ा कोई भी मुद्दा द्विपक्षीय है और किसी तीसरे पक्ष की भूमिका स्वीकार नहीं।
कूटनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि भारत इस दावे को आधिकारिक रूप से नकार सकता है।
पाकिस्तान की ओर से हालांकि यह बयान घरेलू राजनीति में अमेरिकी “सकारात्मक दखल” के रूप में इस्तेमाल हो सकता है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ट्रंप का यह भाषण 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के बाद की उनकी संभावित राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को भी दर्शाता है। ट्रंप अपने समर्थकों को दिखाना चाहते हैं कि वह अब भी वैश्विक नेता के तौर पर प्रभावी हैं।
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