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Tue. Oct 28th, 2025

गाज़ा में शांति बहाल करने के लिए अमेरिका की मध्यस्थता में तैयार हो रहे अंतरराष्ट्रीय समझौते पर अब नया विवाद खड़ा हो गया है। खबर है कि इस समझौते के तहत एक “अंतरराष्ट्रीय स्थिरीकरण बल” (International Stabilization Force – ISRF) गठित किया जा सकता है, जिसमें मुस्लिम देशों के सैनिक शामिल होंगे। लेकिन इस फैसले का इज़राइल ने कड़ा विरोध किया है, खासकर तब जब तुर्किये और पाकिस्तान के सैनिकों के शामिल होने की चर्चा तेज हो गई है।

इज़राइल ने जताया विरोध: “ तुर्किये की सेना को गाज़ा में जगह नहीं”

रविवार को इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने स्पष्ट कहा कि

“यह इज़राइल तय करेगा कि कौन-सी विदेशी सेनाएँ गाज़ा में आ सकती हैं। तुर्किये की सेना की किसी भी भूमिका का हम सख़्त विरोध करते हैं।”

इज़राइल का कहना है कि राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन की सरकार का रुख़ “इज़राइल विरोधी” रहा है, और ऐसे में उनके सैनिकों को गाज़ा में भेजना “शत्रुतापूर्ण कदम” होगा।

इज़राइली मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, देश की संसद की रक्षा समिति ने पिछले हफ्ते एक गोपनीय बैठक में कहा कि प्रस्तावित बल में इंडोनेशिया, अज़रबैजान, और पाकिस्तान के सैनिक भी शामिल हो सकते हैं।

गाज़ा में शांति के लिए अमेरिका का नया प्रस्ताव

अमेरिका की पहल पर तैयार इस “गाज़ा शांति समझौते” का मकसद है –

  1. गाज़ा में आंतरिक सुरक्षा बनाए रखना,
  2. हमास को निहत्था करना,
  3. और मानवीय राहत एवं पुनर्निर्माण में सहयोग देना।

इस अंतरराष्ट्रीय बल का संचालन संयुक्त राष्ट्र या अमेरिकी निगरानी में किया जा सकता है, ताकि 2024-2025 के संघर्षों के बाद क्षेत्र में स्थिरता लाई जा सके।

ट्रंप प्रशासन के सूत्रों ने बताया कि यह समझौता “20-बिंदुओं की गाज़ा शांति योजना” पर आधारित है, जिसमें “ISRF” की स्थापना एक प्रमुख बिंदु है।

अमेरिका कई देशों से कर रहा है बातचीत

अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने पुष्टि की है कि वॉशिंगटन इंडोनेशिया, यूएई, मिस्र, कतर, तुर्किये और अज़रबैजान समेत कई इस्लामी देशों से इस बल में सैनिक भेजने को लेकर चर्चा कर रहा है।

हालांकि, अमेरिका खुद अपने सैनिक नहीं भेजेगा, क्योंकि वह गाज़ा में प्रत्यक्ष सैन्य भूमिका से बचना चाहता है।

ट्रंप प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा,

“हमारा उद्देश्य इस्लामी देशों की भागीदारी से क्षेत्र में स्थायी शांति लाना है। यह कोई युद्ध अभियान नहीं होगा, बल्कि पुनर्निर्माण और सुरक्षा सुनिश्चित करने का मिशन होगा।”

पाकिस्तान की भूमिका पर निगाहें – गाजा

रिपोर्ट्स के अनुसार, पाकिस्तान जल्द ही यह घोषणा कर सकता है कि वह इस बल में हिस्सा लेगा या नहीं।
इस्लामाबाद स्थित सूत्रों ने बताया कि सरकार और सेना इस विषय पर अंतिम चरण की चर्चा में हैं।

पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता ने संकेत दिए कि

“हम शांति और मानवीय राहत के हर प्रयास में सहयोगी हैं, लेकिन यह निर्णय राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर लिया जाएगा।”

हालांकि, कई रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान इस मिशन में हिस्सा लेने के पक्ष में है, ताकि वह मुस्लिम देशों में अपनी कूटनीतिक भूमिका मजबूत कर सके और अरब देशों के साथ अपने रिश्ते बेहतर बना सके।

तुर्किये की भागीदारी पर सबसे ज्यादा विवाद

अमेरिका चाहता है कि तुर्किये भी इस बल में शामिल हो, लेकिन इज़राइल ने इसे “रेड लाइन” बताया है।
दरअसल, तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन लंबे समय से फिलिस्तीन के खुले समर्थक हैं और उन्होंने कई बार इज़राइल की नीतियों की आलोचना की है।

इज़राइल को डर है कि अगर तुर्की सैनिक गाज़ा में तैनात हुए तो उनका झुकाव हमास के पक्ष में हो सकता है।
इसी वजह से नेतन्याहू सरकार ने अमेरिका को यह संदेश दिया है कि “तुर्की की भागीदारी अस्वीकार्य है।”

हमास को निहत्था करना मिशन का मुख्य लक्ष्य

इस ISRF बल का सबसे अहम मिशन हमास को निरस्त्र (disarm) करना होगा।
पिछले सालों में गाज़ा में हुए संघर्षों के दौरान हमास ने न केवल अपने नियंत्रण को बनाए रखा, बल्कि इज़राइल पर सैकड़ों रॉकेट भी दागे।

अमेरिकी प्रस्ताव के अनुसार –

गाज़ा में सुरक्षा बनाए रखना,

सीमाओं पर नियंत्रण करना,

और मानवीय सहायता पहुँचाना — इन तीनों जिम्मेदारियों का निर्वहन ISRF करेगा।

इससे गाज़ा प्रशासन को स्थिर करने और पुनर्निर्माण कार्यों को गति देने में मदद मिलेगी।

इज़राइल की रणनीतिक चिंता

इज़राइल की चिंता यह है कि अगर मुस्लिम देशों के सैनिक गाज़ा में तैनात हुए, तो यह उसकी सुरक्षा नीति को चुनौती दे सकता है।
वह चाहता है कि गाज़ा की सुरक्षा में पश्चिमी देशों या संयुक्त राष्ट्र की तैनाती हो, ताकि उस पर अधिक नियंत्रण बना रहे।

इज़राइल के अधिकारियों ने यह भी कहा कि अगर ISRF में तुर्की या पाकिस्तान जैसे देश शामिल हुए, तो यह “असंतुलित और पक्षपातपूर्ण बल” बन जाएगा।

पाकिस्तान के लिए कूटनीतिक अवसर

विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान के लिए यह मौका है कि वह

मुस्लिम दुनिया में अपनी नेतृत्व भूमिका पुनः स्थापित करे,

अरब देशों और तुर्की दोनों से संबंध मजबूत बनाए,

और अमेरिका के साथ सीमित सहयोग के जरिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि सुधार सके।

लेकिन दूसरी ओर, भारत जैसे देशों के लिए यह विकास रणनीतिक चिंता का विषय बन सकता है, क्योंकि गाज़ा में पाकिस्तानी सैनिकों की मौजूदगी क्षेत्रीय शक्ति समीकरणों को प्रभावित कर सकती है।

भविष्य की राह: क्या पाकिस्तान भेजेगा सैनिक?

सरकारी सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तान में इस विषय पर निर्णय जल्द लिया जा सकता है।
हालांकि, इस्लामाबाद सरकार अभी यह तय कर रही है कि वह “प्रत्यक्ष सैन्य तैनाती” करे या “मानवीय सहायता मिशन” के रूप में भाग ले।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा,

“हम चाहते हैं कि गाज़ा में शांति कायम हो। पाकिस्तान किसी भी ऐसे कदम का हिस्सा बनेगा जो क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान दे।”

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