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Mon. Oct 13th, 2025

मलावी की राजनीति में बड़ी वापसी करते हुए 85 वर्षीय पीटर मुथारिका ने शनिवार को राष्ट्रपति पद की शपथ ली। उन्होंने हाल ही में हुए चुनाव में 56% वोट हासिल कर प्रतिद्वंदी लाजारस चकवेरा (33%) को हराया। राजधानी ब्लैंटायर के कामुजु स्टेडियम में आयोजित भव्य शपथग्रहण समारोह में हजारों लोग मौजूद रहे।

मुथारिका ने अपने भाषण में कहा –
“मैं दूध और शहद का वादा नहीं करता, लेकिन मेहनत और सच्चाई से देश को मजबूत बनाने का वादा करता हूँ।”

मलावी की मौजूदा चुनौतियाँ

मलावी इस समय बेहद गंभीर आर्थिक और सामाजिक संकट से गुजर रहा है:

  • महंगाई और ईंधन संकट: रोजमर्रा की चीजें महंगी होती जा रही हैं।
  • खाद्य असुरक्षा: मकई और अन्य अनाज की कमी से करोड़ों लोग प्रभावित।
  • विदेशी मुद्रा की कमी: आयात ठप होने की कगार पर।
  • भ्रष्टाचार और शासन की कमजोरी: पहले भी नेताओं पर घोटालों के आरोप लगे हैं।
  • गरीबी और बेरोजगारी: लगभग 70% आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन जी रही है।

मुथारिका की प्राथमिकताएँ और वादे – मलावी

  1. भ्रष्टाचार पर सख्ती
    मुथारिका ने वादा किया है कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं करेगी। उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ का आभार जताया और कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को “दान नहीं, साझेदारी” की जरूरत है।
  2. आर्थिक सुधार
  • विदेशी निवेश आकर्षित करना।
  • निर्यात (कृषि, खनन, पर्यटन) को बढ़ावा देना।
  • बजट घाटा और कर्ज को नियंत्रित करना।
  1. खाद्य सुरक्षा और कृषि सुधार
  • सिंचाई आधारित खेती को बढ़ावा।
  • बेहतर बीज और उर्वरक किसानों तक पहुँचाना।
  • जलवायु अनुकूल खेती को प्रोत्साहन।
  1. सामाजिक विकास
  • गरीब परिवारों को नकद और खाद्य सहायता।
  • स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं का विस्तार।
  • स्वच्छ पानी, बिजली और बुनियादी सुविधाओं में सुधार।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग – मलावी

मुथारिका ने बताया कि उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बधाई संदेश मिला है। जल्द ही मलावी का एक प्रतिनिधिमंडल अमेरिका जाकर आर्थिक सहायता और साझेदारी पर चर्चा करेगा। विश्व बैंक और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से भी मदद की उम्मीद है।

जनता की उम्मीदें और आगे का रास्ता

जनता की सबसे बड़ी उम्मीदें हैं:

  • महंगाई कम हो,
  • खाने-पीने की चीजें सस्ती और उपलब्ध हों,
  • रोजगार बढ़े और
  • भ्रष्टाचार पर अंकुश लगे।

मुथारिका के पास अनुभव तो है, लेकिन उम्र और चुनौतियों दोनों की सीमाएँ हैं। अब यह देखना होगा कि क्या वे सचमुच अपने वादे को हकीकत में बदल पाएंगे या फिर यह कार्यकाल भी सिर्फ वादों तक सीमित रह जाएगा।

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