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Sat. Dec 27th, 2025

बांग्लादेश आज एक बड़े राजनीतिक संकट से गुजर रहा है। इस संकट की जड़ है शरीफ उस्मान हादी नामक युवा नेता की हत्या और उसके बाद फैली अशांति, संघर्ष और गहरा सामाजिक-राजनीतिक विभाजन। हाल के दिनों में यह मामला राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियों में बना हुआ है क्योंकि इससे बांग्लादेश की राजनीति, प्रशासन और जनता के बीच गंभीर मतभेद सामने आए हैं।

कौन थे शरीफ उस्मान हादी? -बांग्लादेश

शरीफ उस्मान हादी बांग्लादेश के एक युवा राजनीतिक कार्यकर्ता और इंकलाब मंच (Inqilab Mancha) नामक आंदोलन के प्रमुख चेहरा थे। वह ढाका विश्वविद्यालय से जुड़े छात्र और राजनीतिक विरोधी नेतृत्व में सक्रिय थे। हादी का नाम बड़े पैमाने पर बांग्लादेश के मौजूदा राजनितिक ढांचे के आलोचक के रूप में जाना जाता था, विशेषकर भारत-अनुकूल नीतियों और शासक दल अवामी लीग की सत्तात्मक रणनीतियों के खिलाफ़ उनके आक्रामक रुख के लिये। मौके और समय के हिसाब से उन्हें कुछ लोग कट्टर प्रतिरोधी भी मानते थे।

हमले के बाद की स्थिति: गोलीबारी और मौत

12 दिसंबर 2025 को ढाका के बिजयनगर इलाके में हादी एक चुनावी रैली के दौरान मास्कधारी हमलावरों द्वारा गोली मार दी गई। यह हमला अचानक हुआ और उसके बाद खून से लहूलुहान हालत में उन्हें तुरंत चिकित्सा के लिये सिंगापुर ले जाया गया। वहां इलाज के बावजूद 18 दिसंबर 2025 को उनकी मृत्यु हो गई, जिससे देशभर में गहरा आक्रोश और असंतोष फैल गया।

मृत्यु के बाद राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिक्रियाएँ

उनकी मौत के बाद ढाका और अन्य शहरों में भारी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आये। राजनैतिक उत्थान के चलते कई क्षेत्रों में तोड़फोड़, हिंसा और विरोध प्रदर्शन देखने को मिले। बांग्लादेश के प्रमुख मीडिया संस्थानों पर भी हमले रहे और कई जगह पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुईं।

इंकलाब मंच और हादी के समर्थकों ने सरकार से न केवल हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग की, बल्कि कई नेताओं ने यूनुस सरकार को 24 घंटे के भीतर रिपोर्ट देने और स्पष्ट कार्रवाई का आदेश देने तक की चेतावनी दी।

ढाका यूनिवर्सिटी की राजनीतिक हलचल – बांग्लादेश

हादी की मौत के बाद ढाका यूनिवर्सिटी का बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान हॉल का नाम बदलकर “शहीद शरीफ उस्मान हादी हॉल” कर दिया गया। विश्वविद्यालय के छात्र संगठन DUCSU और हॉल यूनियन ने रात के अंधेरे में पुराने नामपट्टे को हटाकर नया बोर्ड लगा दिया। इस फैसले के साथ ही हॉल की मूल इमारत पर बनी शेख मुजीबुर रहमान की ग्रैफिटी को भी पेंट कर ढक दिया गया, जिससे नया राजनीतिक संदेश सामने आया है। यह बदलाव बांग्लादेश में राजनीतिक पहचानों और प्रतीकों के संघर्ष का प्रतीक बन गया है।

इसके अलावा, DUCSU ने बांगबंधु हॉल समेत कुल पांच इमारतों के नाम बदलने की मांग की और प्रदर्शनकारियों ने प्रशासन को अल्टीमेटम दिया कि यदि ये बदलाव नहीं होते हैं तो और कदम उठाए जाएंगे।

उस्मान हादी का दफनाना और प्रतीकात्मक राजनीति

20 दिसंबर को हादी के जनाज़ा (अनंतिम नमाज़) समारोह को संसद के दक्षिण प्लाजा में भारी भीड़ ने अंजाम दिया। उनकी समाधि **ढाका यूनिवर्सिटी के परिसर में बांग्लादेश के राष्ट्रीय कवि *काजी नजरुल इस्लाम* की कब्र के पास कर दी गई। राष्ट्रीय कवि के पास दफनाना उस्मान हादी के लिए एक प्रतीकात्मक सम्मान माना गया, लेकिन इस फैसले ने देश में बहस और विभाजन पैदा कर दिया।

कुछ लोगों ने इसे एक सम्मानित अंतिम विदाई बताया, जबकि आलोचकों ने कहा कि कवि काजी नजरुल इस्लाम की छवि और विचार एक शांतिवादी और तर्कवादी विचारधारा के प्रतीक हैं, वहीं हादी की विचारधारा में कट्टर विचार और विभाजनकारी लहजा रहा है। यह निर्णय राजनीति और चेतना के टकराव को दिखाता है कि कैसे प्रतीकात्मक स्थल भी आज राजनैतिक संदेश की वाहक बनते जा रहे हैं।

सरकार और गृह मंत्री की प्रतिक्रिया

बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने कहा है कि हादी की हत्या की जांच जारी है और दोषियों की जल्द गिरफ्तारी के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कानून-व्यवस्था को मजबूत करने और मामले की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने की बात कही है, हालांकि राजनीतिक हलकों में गृह मामलों के सलाहकार पर इस्तीफे की मांग भी तेज हुई है।

कई राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह हत्या और उसके बाद के राजनीतिक कदम आगामी फरवरी 2026 के चुनावों को प्रभावित कर सकते हैं। विरोधी गुट सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि हादी की हत्या और प्रतीकात्मक राजनीति से जनता का ध्यान मुख्य मुद्दों से भटका दिया जा रहा है।

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