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Mon. Oct 13th, 2025

पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुआ हालिया रक्षा समझौता पूरे दक्षिण एशियाई भू-राजनीतिक परिदृश्य में चर्चा का विषय बना हुआ है। इस समझौते को पाकिस्तान अपनी कूटनीतिक जीत बताते हुए भारत और इज़रायल के लिए एक “रणनीतिक संदेश” करार दे रहा है। पाकिस्तान के अनुसार, समझौते की शर्तों में यह प्रावधान शामिल है कि किसी एक देश पर हमला दोनों देशों पर हमला माना जाएगा। इससे यह संकेत मिल रहा है कि दोनों राष्ट्र अब आपसी सुरक्षा और रक्षा सहयोग को और गहराई से जोड़ने जा रहे हैं।

समझौता का सार: ‘एक पर हमला, दोनों पर हमला’

पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान के मुताबिक, इस रक्षा समझौते का मकसद दोनों देशों की सुरक्षा और स्थिरता को सुनिश्चित करना है। पाकिस्तान ने दावा किया कि यह समझौता न केवल सैन्य सहयोग बल्कि खुफिया साझेदारी, प्रशिक्षण और संयुक्त रक्षा उत्पादन जैसे क्षेत्रों को भी शामिल करता है।

सबसे अहम बात यह कही गई कि यदि किसी एक देश की संप्रभुता पर हमला होता है तो इसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा। इस तरह की भाषा आमतौर पर सैन्य गठबंधनों में देखने को मिलती है और पाकिस्तान इसे अपनी “स्ट्रेटेजिक गेन” बता रहा है।

पाकिस्तान का भारत और इज़रायल पर सीधा इशारा

समझौते के बाद पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “यह समझौता पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच अटूट दोस्ती का प्रतीक है। यह उन ताकतों के लिए स्पष्ट संदेश है जो हमारे क्षेत्र की स्थिरता को चुनौती देना चाहती हैं। चाहे वह भारत हो या इज़रायल, अब वे यह जान लें कि पाकिस्तान अकेला नहीं है।”

यह बयान साफ तौर पर दर्शाता है कि पाकिस्तान इस समझौते को भारत और इज़रायल के खिलाफ एक सामरिक ढाल के रूप में देख रहा है। पाकिस्तान पहले से ही कश्मीर मुद्दे को लेकर भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मुखर रहा है, और अब वह इस नई साझेदारी को अपनी विदेश नीति का बड़ा हथियार बता रहा है।

सऊदी अरब का रुख: संतुलन की कोशिश

दिलचस्प बात यह है कि सऊदी अरब ने अभी तक इस समझौते को लेकर बहुत कम विवरण साझा किया है। रियाद की ओर से जारी बयान में कहा गया कि यह रक्षा सहयोग दोनों देशों की सुरक्षा, रक्षा उत्पादन और क्षेत्रीय शांति को मजबूत करेगा। हालांकि, सऊदी अरब ने भारत या इज़रायल का नाम नहीं लिया और न ही “एक पर हमला, दोनों पर हमला” वाले प्रावधान पर विस्तार से कुछ कहा।

विशेषज्ञों का मानना है कि सऊदी अरब फिलहाल अपने क्षेत्रीय और वैश्विक हितों को ध्यान में रखते हुए संतुलित कूटनीति अपनाना चाहता है। भारत के साथ सऊदी अरब के मजबूत आर्थिक और ऊर्जा संबंध हैं। ऐसे में रियाद भारत को नाराज़ करने का जोखिम नहीं ले सकता।

समझौता पर भारत की नजर: सतर्क लेकिन शांत

भारत सरकार ने इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार नई दिल्ली स्थिति पर करीब से नजर रख रही है। भारत और सऊदी अरब के बीच हाल के वर्षों में ऊर्जा, निवेश और सुरक्षा मामलों में संबंध मजबूत हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के बीच कई अहम समझौते हुए हैं।

रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान का यह समझौता प्रतीकात्मक ज्यादा और व्यावहारिक कम है। पाकिस्तान आर्थिक संकट से जूझ रहा है और उसकी रक्षा क्षमता भी सीमित है। ऐसे में यह समझौता पाकिस्तान की घरेलू राजनीति और कूटनीतिक छवि को चमकाने की कोशिश हो सकता है।

क्षेत्रीय समीकरण पर असर

दक्षिण एशिया में पहले से ही कई भू-राजनीतिक तनाव मौजूद हैं। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), अफगानिस्तान की अस्थिरता, और भारत-चीन सीमा विवाद जैसी परिस्थितियों के बीच यह समझौता नए समीकरण पैदा कर सकता है।

  1. भारत-सऊदी संबंध: भारत सऊदी अरब का प्रमुख तेल आयातक है और दोनों देशों के बीच निवेश परियोजनाएं अरबों डॉलर की हैं। यदि रियाद इस समझौते को पाकिस्तान के साथ सैन्य गठबंधन में बदलता है, तो यह भारत-सऊदी रिश्तों में दरार डाल सकता है।
  2. ईरान का दृष्टिकोण: ईरान और सऊदी अरब के संबंध पहले से जटिल रहे हैं। पाकिस्तान का सऊदी अरब के साथ रक्षा गठजोड़ ईरान को भी सतर्क कर सकता है, क्योंकि पाकिस्तान की सीमाएं ईरान से लगी हैं।
  3. इज़रायल पर प्रभाव: भारत और इज़रायल रक्षा तकनीक और खुफिया सहयोग में लंबे समय से साझेदार हैं। पाकिस्तान का इज़रायल का नाम लेकर बयान देना मध्य पूर्व की राजनीति में नई खाई पैदा कर सकता है।

पाकिस्तान की घरेलू राजनीति में मायने

पाकिस्तान के लिए यह समझौता घरेलू मोर्चे पर भी अहम है। आर्थिक संकट, महंगाई और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रही सरकार के लिए यह समझौता एक बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश किया जा रहा है। प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इसे जनता के सामने “कूटनीतिक जीत” के रूप में प्रचारित कर रहे हैं।

विश्लेषकों का कहना है कि इस समझौते से पाकिस्तान अपने नागरिकों को यह संदेश देना चाहता है कि वह अंतरराष्ट्रीय मंच पर अकेला नहीं है और मुस्लिम दुनिया के प्रमुख देश उसके साथ खड़े हैं।

विशेषज्ञों की राय

अंतरराष्ट्रीय संबंध विशेषज्ञों का मानना है कि इस समझौते का वास्तविक प्रभाव सीमित रहेगा। रक्षा सहयोग के लिहाज से पाकिस्तान और सऊदी अरब पहले से ही प्रशिक्षण और खुफिया जानकारी साझा करते रहे हैं। नया समझौता इन गतिविधियों को औपचारिक रूप दे सकता है, लेकिन “हमले को दोनों पर हमला मानने” वाला प्रावधान व्यवहार में लागू करना कठिन होगा।

रक्षा विश्लेषक बताते हैं कि ऐसे समझौते अक्सर राजनीतिक संदेश देने के लिए किए जाते हैं। पाकिस्तान अपने रणनीतिक महत्व को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है ताकि भारत और उसके सहयोगियों पर दबाव बनाया जा सके।

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