12 दिसंबर 2025 को तुर्कमेनिस्तान की राजधानी अश्गाबात में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय समेलन में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की एक अप्रत्याशित और कूटनीतिक रूप से चर्चा में आयी घटना सामने आई, जिसमें उन्होंने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन तथा तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैय्यप एर्डोगन के बीच चल रही बैठक में खुद ही घुसने की कोशिश की। यह व्यवहार विस्तार से सोशल मीडिया और दुनिया भर की मीडिया में वायरल हुआ, और विश्लेषक इसे कूटनीति की बारीकियों तथा आपसी संबंधों पर प्रश्न उठाने वाला मान रहे हैं।
मामला क्या है — शुरुआत से पूरा विवरण – शहबाज़
शहबाज़ शरीफ़ तुर्कमेनिस्तान में आयोजित एक बड़े अंतरराष्ट्रीय फोरम ऑन पीस एंड ट्रस्ट में हिस्सा ले रहे थे। इस बैठक का आयोजन 30वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में किया गया था, जब तुर्कमेनिस्तान की स्थायी तटस्थता को संयुक्त राष्ट्र ने मान्यता दी थी। इस फोरम में कई विश्व के नेता शामिल हुए — जिनमें रूस के राष्ट्रपति पुतिन, तुर्की के राष्ट्रपति एर्डोगन, और कई अन्य प्रमुख हस्तियाँ शामिल थीं।
शहबाज़ शरीफ़ के कार्यक्रम के अनुसार, उन्हें रूसी राष्ट्रपति पुतिन से एक द्विपक्षीय बैठक करनी थी। लेकिन जब वह पुतिन से मिलने के लिए समय पर पहुंचे, तो उन्हें लगभग 40 मिनट तक इंतजार कराया गया — और वह बैठक तय समय पर शुरू नहीं हुई। इस दौरान शरीफ़ और उनका डेलीगेशन कमरे में बैठे इंतजार करते रहे, लेकिन कोई स्पष्ट सूचना नहीं मिली कि बैठक कब शुरू होगी।
समय गुजरने के साथ उनकी प्रतीक्षा लंबी होती गई और प्रतीत होता है कि शरीफ़ खुद असहज हो गए। रिपोर्टों के अनुसार उन्होंने मजबूरन दरवाज़ा खोला और उस बैठक के कमरे में प्रवेश किया, जहाँ पुतिन और एर्डोगन की वार्ता हो रही थी। थोड़ी बातचीत के बाद वह लगभग 10 मिनट के भीतर वहाँ से चले गए।
घटना का मीडिया और सोशल मीडिया में प्रभाव – शहबाज़
यह घटना प्रोटोकॉल के खिलाफ और कूटनीति के लिहाज़ से बहुत असामान्य समझी जा रही है। सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो क्लिप और प्रतिक्रियाओं में लोग इसे एक अजीब और कूटनीतिक ग़लती मान रहे हैं। कई लोगों ने इसे शहबाज़ शरीफ़ द्वारा बेचैनी और जल्दीबाज़ी का संकेत बताया है, जबकि कुछ विश्लेषक इसे पाकिस्तान- रूस के रिश्तों में संभावित असंतुलन वाला संकेत भी कह रहे हैं।
कई यूजर कमेंट कर रहे हैं कि यह “डिप्लोमैटिक मिसस्टेप” है और इंटरनेशनल मंच पर पाकिस्तान के लिए शर्मिंदगी का विषय बन गया। वहीं कुछ लोगों ने जबरन मीटिंग में घुसने के फैसले पर भी सवाल खड़े किए हैं, कह रहे हैं कि ऐसा व्यवहार किसी भी लोकतांत्रिक देश के प्रधान मंत्री के कृत्यों के अनुरूप नहीं है।
पुतिन-शरीफ़ कूटनीतिक संबंधों का परिप्रेक्ष्य
इस घटना से पहले भी यह ज्ञात है कि पुतिन और शरीफ़ के बीच पहले भी कूटनीतिक तनाव या दूरी के संकेत मिले थे। कुछ रिपोर्टें यह भी बताती हैं कि ऐसे पहले भी अवसर आए थे जब पुतिन ने शरीफ़ को प्राथमिकता नहीं दी या संभावित बातचीत कम समय में की। ऐसी टिप्पणियाँ रूस-पाकिस्तान संबंधों की तकनीकी तह में कुछ पिछले सन्दर्भों को उजागर करती हैं, जिनका विश्लेषण अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक जानकार कर रहे हैं।
रूस ने हाल ही में भारत यात्रा भी की थी, जहाँ पुतिन और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच सम्मिलन अपेक्षाकृत दोस्ताना और उच्च स्तर का रहा था। इसके विपरीत, रूस-पाकिस्तान बैठक में प्रतीक्षा करने के बावजूद पुतिन का शरीफ़ से देरी से मिलना, और फिर होने वाली बातचीत का छोटा और औपचारिक होना इस बात का संकेत देता है कि रूस पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों की प्राथमिकताओं पर दोबारा विचार कर रहा है।
अंतरराष्ट्रीय मंच और बातचीत का सन्दर्भ
तुर्कमेनिस्तान में आयोजित यह फोरम सिर्फ तीन नेताओं का एक स्थानीय बैठक नहीं था, बल्कि एक वैश्विक मंच था, जिसका मक़सद था “शांति और विश्वास” का संदेश देना। ऐसे मंच पर तीन बड़े नेताओं के बीच की बातचीत में शहबाज़ शरीफ़ का इस तरह शामिल होना असामान्य है। पारंपरिक कूटनीति में सामान्यतः बैठक की शुरुआत में ही एक व्यवस्थित एजेंडा तय होता है, और नेता उसी के अनुसार उपस्थित होते हैं; मात्र हाथ में फोन उठाकर या जोर देकर बैठक में घुस जाना प्रोटोकॉल के विपरीत माना जाता है।
विश्लेषकों की टिप्पणी
विश्लेषकों का कहना है कि यह पूरा दृश्य दो चीजों का संकेत दे सकता है:
👉 एक तो यह कि रूस-पाकिस्तान रिश्तों में तनाव या प्राथमिकता में गिरावट है—जहाँ रूस ने पाकिस्तान को प्राथमिकता नहीं दी।
👉 दूसरा यह कि शहबाज़ शरीफ़ की विदेश नीति में असहजता और कूटनीतिक मंच पर उचित समय प्रबंधन की कमी इसका कारण हो सकती है।
कुछ विश्लेषकों का यह भी मानना है कि यह घटना पाकिस्तान के नेतृत्व की अंतरराष्ट्रीय समझ और प्रोटोकॉल का अभाव दर्शाती है, जिससे पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक अलग और कमजोर छवि बनी।
क्या हुआ इसके बाद?
रिपोर्टों के अनुसार, इस घटना के कुछ समय बाद शहबाज़ शरीफ़ और पुतिन ने औपचारिक स्तर पर मुलाक़ात भी की, लेकिन इस मुलाक़ात को भी औपचारिकता के सिवा कोई विशेष कूटनीतिक उपलब्धि नहीं बताया गया है। यह मुलाक़ात पहले से तय कार्यक्रम का हिस्सा थी, लेकिन वह भी तत्कालीन परिस्थितियों के बीच एक सामान्य बातचीत की तरह रही।
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