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नई दिल्ली, 17 दिसंबर 2025 — केंद्र सरकार और कांग्रेस के बीच नेहरू से जुड़े अभिलेखों को लेकर जारी विवाद आज एक नए चरण में पहुंच गया है। सरकार ने महासचिव सोनिया गांधी पर तीखी प्रतिक्रिया दी है और उन ‘51 डिब्बों’ में रखे दस्तावेजों को पीएम संग्रहालय और पुस्तकालय ( PMML ) में वापस करने की अपील की है, ताकि इतिहासकार, शोधकर्ता और आम जनता महत्वपूर्ण ऐतिहासिक रिकॉर्ड तक पहुंच हासिल कर सकें।

यह मामला पिछले कुछ महीनों से राजनीतिक बहस का विषय बना हुआ है, और आज सरकार द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण के साथ इसका स्वरूप और तीव्रता यादों और इतिहास की सार्वभौमिक उपलब्धता के सवाल पर केंद्रित हो गया है।

क्या है पूरा मामला?

मामला यह है कि प्रधानमंत्रियों का संग्रहालय और पुस्तकालय (PMML)—जिसका नाम पहले नेहरू स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय (NMML) था—के नेहरू से जुड़े दस्तावेज वर्षों पहले से ही विवाद का विषय रहे हैं।

इन दस्तावेजों में जवाहरलाल नेहरू के निजी पत्र, नोट और अन्य अभिलेख शामिल हैं, जो इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं। सरकार का तर्क है कि ये दस्तावेज देश की ऐतिहासिक धरोहर हैं और इन्हें संग्रहालय में सुरक्षित रूप से रखा जाना चाहिए, न कि किसी निजी संग्रह में।

सरकार के अनुसार, 51 डिब्बे नेहरू से जुड़े पेपर्स को साल 2008 में सोनिया गांधी के परिवार की ओर से औपचारिक रूप से PMML से वापस ले लिया गया था

आज इस पर केंद्र सरकार ने स्पष्ट रूप से जोर दिया है कि ये दस्तावेज “लापता” नहीं हैं क्योंकि उनकी स्थिति ज्ञात है, लेकिन उनका स्थान सार्वजनिक अभिलेखागार में होना चाहिए, न कि बंद दरवाजों के पीछे।

केंद्र सरकार का पक्ष – PMML

केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर विस्तृत पोस्ट के माध्यम से कहा कि
✔ PMML ने 2025 के अपने नियमित निरीक्षण में कोई भी नेहरू से जुड़े दस्तावेज गायब पाया है, ऐसा नहीं है।
यह विवाद इसलिए पैदा हुआ क्योंकि कांग्रेस के पास वह 51 कार्टन दस्तावेज अभी भी रखे हुए हैं, जो 2008 में वापसी के लिए ले जाए गए थे।
✔ सरकार का तर्क है कि ये दस्तावेज देश के पहले प्रधानमंत्री से जुड़े हैं और इसलिए उनसे जुड़े अभिलेख जनता, शोधकर्ता और संसद तक पहुंच योग्य होने चाहिए

शेखावत ने कहा, “इतिहास को चुनिंदा रूप से तैयार नहीं किया जा सकता। पारदर्शिता लोकतंत्र की नींव है और अभिलेखागार की खुली पहुंच इसका नैतिक दायित्व है।”

उन्होंने सोनिया गांधी से यह भी पूछा कि
ये दस्तावेज क्यों नहीं लौटाए गए?
क्या छुपाया जा रहा है?
✔ आखिर महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज अब तक सार्वजनिक अभिलेखागार में क्यों नहीं हैं?
ऐसे सवाल सरकार ने उठाए हैं।

सरकार ने यह भी बताया कि PMML ने जनवरी और जुलाई 2025 में सोनिया गांधी के कार्यालय को दस्तावेज वापस देने के लिए पत्र भेजे हैं, लेकिन अब तक कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।

कांग्रेस का रुख और मांगें – PMML

विपक्षी कांग्रेस ने सरकार की टिप्पणी का तुरंत विरोध किया। पार्टी ने कहा कि
✔ सरकार का दर्ज जवाब संसद में भ्रामक था और उसके लिए आश्चर्यजनक रूप से माफी मांगनी चाहिए।

कांग्रेस महासचिव जयराम रamesh ने सोशल मीडिया पर लिखा कि

“लोकसभा में कल आखिरकार सच्चाई उजागर हुई। क्या अब सरकार से माफी मिलने वाली है?” (Outlook India)

कांग्रेस का कहना है कि सरकार ने इस मुद्दे को राजनीतिक रूप से उभारा है और उसे इतिहास के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगता है।

ऐतिहासिक महत्व

ये दस्तावेज केवल कागजात नहीं हैं, बल्कि देश की आज़ादी और पहले प्रधानमंत्री के शासनकाल से जुड़ी महत्‍वपूर्ण ऐतिहासिक रिकॉर्ड्स हैं। इनमें शेख और विदेशी नेताओं के साथ पत्राचार, योजनाएं, नीति-निर्माण से जुड़ी फ़ाइलें और अनेक महत्वपूर्ण तथ्य शामिल हैं, जिनसे शोधकर्ताओं को नेहरू काल के यथार्थ को समझने में मदद मिलती है।

क्या PMML ने खोया कुछ?

सरकार ने स्पष्ट किया कि 2025 में हुई PMML की वार्षिक जांच में कोई भी नेहरू से जुड़ा दस्तावेज “लापता” नहीं पाया गया, इसका मतलब यह है कि संग्रहालय से कुछ गायब नहीं हुआ।

लेकिन विवाद इस बात पर बना है कि
✔ 51 कार्टन पेपर्स को कांग्रेस ने 2008 में क्यों ले लिया था?
उन्हें अब तक क्यों नहीं लौटाया गया?
✔ क्या वे दस्तावेज सार्वजनिक अभिलेखागार की बजाय कहीं और रखे जा रहे हैं?
इन सवालों पर आज भी बहस जारी है।

राजनीतिक बहस का असर

यह मुद्दा सिर्फ इतिहास और अभिलेखों का नहीं है, बल्कि इससे राजनीतिक बहसों को भी हवा मिल रही है। कांग्रेस इसे सरकार की इतिहास के साथ राजनीति करने की कोशिश बता रही है, जबकि सरकार इसे सार्वजनिक हित, पारदर्शिता और लोकतांत्रिक अधिकार का मामला मान रही है।

उल्लेखनीय है कि PMML सोसायटी के अध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं और इसके उपाध्यक्ष रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह हैं। यह संस्थान अब देश के प्रधानमंत्रियों के इतिहास को संरक्षित रखने वाली प्रमुख सरकारी संस्था है।

विश्लेषण: विवाद का व्यापक प्रभाव

विश्लेषकों का मानना है कि
✔ यह मुद्दा राजनीतिक रूप से तेज़ी से फैल रहा है क्योंकि यह इतिहास और सत्ता के नियंत्रण से जुड़ा है।
भाजपा इसका इस्तेमाल यह दिखाने के लिए कर रही है कि ऐतिहासिक दस्तावेजों की पारदर्शिता लोकतंत्र में बेहद अहम है।
✔ वहीं विपक्ष मानता है कि सरकार इतिहास को एक पक्षीय रूप देने की कोशिश कर रही है।

दोनों पक्षों के बयान देश भर में चर्चा का विषय बने हुए हैं, और यह विवाद आगे भी जारी रहने की संभावना जताई जा रही है।

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