पश्चिम बंगाल की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। राज्य में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज़ हो गया है। तृणमूल कांग्रेस की राज्यसभा सदस्य और अखिल भारतीय मतुआ महासंघ की अध्यक्ष ममता बाला ठाकुर ने इस मुद्दे पर बड़ा बयान देकर राजनीतिक माहौल को और उग्र कर दिया है। उनका कहना है कि यदि एसआईआर लागू किया गया तो भारत में हालात नेपाल जैसे हो सकते हैं।
ममता बाला ठाकुर का बयान और उसका राजनीतिक अर्थ
ममता बाला ठाकुर ने शनिवार को मीडिया से बातचीत में कहा कि मतदाता सूची के इस विशेष पुनरीक्षण का असली मकसद बंगाल के मतुआ समुदाय और बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले खास वर्ग को डराना और उन्हें मताधिकार से वंचित करना है।
उन्होंने चेतावनी दी, “अगर एसआईआर लागू हुआ तो भारत का माहौल नेपाल जैसा हो जाएगा। जिस तरह नेपाल में नागरिकता को लेकर बड़े आंदोलन और उथल-पुथल हुई, वैसी ही स्थिति यहां देखने को मिल सकती है।”
मतुआ समाज, जो मुख्य रूप से बांग्लादेश से आए नामशूद्र (दलित) हिंदुओं का बड़ा वोट बैंक है, बंगाल की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाता है। यह समुदाय राज्य की करीब 60 विधानसभा सीटों पर असर डालने में सक्षम माना जाता है। 2019 और 2021 के चुनावों में भाजपा और तृणमूल, दोनों पार्टियों ने मतुआ वोटरों को साधने के लिए लगातार प्रयास किए थे।
एसआईआर क्या है और विवाद क्यों?
विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) चुनाव आयोग की वह प्रक्रिया है जिसमें मतदाता सूची की गहन जांच कर यह सुनिश्चित किया जाता है कि केवल योग्य मतदाता ही सूची में बने रहें। आमतौर पर इसमें संदिग्ध या डुप्लीकेट नाम हटाए जाते हैं और नए योग्य मतदाताओं को जोड़ा जाता है।
हालांकि, बंगाल में इसे लेकर विवाद इसलिए है क्योंकि विपक्ष का आरोप है कि भाजपा शासित केंद्र सरकार इस प्रक्रिया के बहाने खास तौर पर प्रवासी और सीमा पार से आए मतदाताओं को टारगेट करना चाहती है। दूसरी ओर भाजपा का कहना है कि यह सिर्फ मतदाता सूची को शुद्ध और पारदर्शी बनाने की प्रक्रिया है।
ममता की तृणमूल कांग्रेस का आरोप
तृणमूल कांग्रेस का दावा है कि एसआईआर का असली उद्देश्य बंगाल के कई जिलों में अल्पसंख्यक और मतुआ समुदाय के मतदाताओं को डराना है। टीएमसी नेताओं का कहना है कि केंद्र सरकार नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के जरिए पहले ही लोगों में भय पैदा कर चुकी है और अब एसआईआर उस भय को बढ़ाने का एक और हथकंडा है।
टीएमसी प्रवक्ता ने कहा, “भाजपा को बंगाल में हार का डर है, इसलिए अब वह मतदाता सूची में छेड़छाड़ करने की कोशिश कर रही है। हम इसे किसी भी कीमत पर लागू नहीं होने देंगे।”
ममता पर भाजपा का पलटवार
भाजपा ने तृणमूल के आरोपों को सिरे से खारिज किया है। बंगाल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि यह प्रक्रिया पूरी तरह चुनाव आयोग के अधीन है और इसका राजनीति से कोई संबंध नहीं है। उनका कहना है कि यदि किसी के पास वैध दस्तावेज हैं तो उसे डरने की जरूरत नहीं।
भाजपा नेताओं का यह भी कहना है कि तृणमूल कांग्रेस डर फैलाकर अपने वोट बैंक को बचाना चाहती है। भाजपा के अनुसार, पारदर्शी मतदाता सूची बनना लोकतंत्र के लिए जरूरी है और इसका विरोध करने का कोई औचित्य नहीं है।
मतुआ समुदाय की अहमियत
मतुआ समाज की राजनीतिक ताकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 1950 के दशक में बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) से आए इस समुदाय की आबादी बंगाल में करीब 1.5 करोड़ मानी जाती है।
भाजपा के लिए: 2019 लोकसभा चुनाव में मतुआ वोटों ने भाजपा को कई सीटों पर फायदा पहुंचाया।
तृणमूल के लिए: मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मतुआ समुदाय के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं का ऐलान किया है और खुद ठाकुरनगर जाकर समुदाय को साधने की कोशिश की है।
इसी वजह से दोनों पार्टियां इस समुदाय को लेकर बेहद सतर्क हैं।
नेपाल वाला संदर्भ क्यों महत्वपूर्ण?
नेपाल में नागरिकता कानून को लेकर लंबे समय से विवाद रहा है। वहां नागरिकता और मताधिकार के मुद्दे पर कई बार हिंसक आंदोलन हुए। ममता बाला ठाकुर ने इसी उदाहरण को देते हुए कहा कि अगर एसआईआर लागू हुआ तो भारत में भी बड़े पैमाने पर अस्थिरता पैदा हो सकती है।
उनका यह बयान इसलिए भी अहम है क्योंकि मतुआ समाज पहले से ही नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर बंटा हुआ है। एक हिस्सा इसे अपने हित में मानता है, तो दूसरा हिस्सा इसे डराने वाली प्रक्रिया कहता है।
चुनाव आयोग की भूमिका
चुनाव आयोग ने अब तक इस पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। आयोग का कहना है कि वह हर राज्य में नियमित रूप से मतदाता सूची का पुनरीक्षण करता है और इसमें किसी तरह की पक्षपातपूर्ण कार्रवाई नहीं होगी। आयोग यह भी कहता है कि कोई भी योग्य नागरिक अपने दस्तावेज़ प्रस्तुत कर नाम जुड़वा सकता है।
राजनीतिक समीकरण पर असर
विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर शुरू हुई यह बहस 2026 में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले बड़ा मुद्दा बन सकती है।
यदि एसआईआर लागू होता है और किसी समुदाय को यह लगता है कि उसे निशाना बनाया जा रहा है, तो इसका सीधा असर चुनावी नतीजों पर पड़ेगा।
मतुआ समाज, जो अब तक भाजपा और तृणमूल दोनों के बीच झूलता रहा है, उसका झुकाव किस ओर होगा, यह आने वाले समय में तय करेगा कि बंगाल की सत्ता पर कौन काबिज होगा।
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