Rahul Gandhi ने हाल ही में अमेरिका यात्रा के दौरान सिखों के मुद्दे पर जो बयान दिए, वे उनके राजनीतिक दृष्टिकोण को लेकर गंभीर सवाल उठाते हैं। ऐसा लगता है कि वह अपनी दादी, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की गलतियों से कोई सबक सीखने को तैयार नहीं हैं। गुरपतवंत सिंह पन्नू, जो एक खालिस्तानी आतंकी हैं, ने राहुल के बयान को सही ठहराते हुए इसे अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश की है। इससे यह स्पष्ट होता है कि राहुल गांधी ने अपने बयान के माध्यम से खालिस्तानियों को एक तरह से समर्थन दिया है, जो देश के लिए चिंताजनक है।
राहुल ने अपने बयान का बचाव करते हुए कहा कि उन्होंने अमेरिका में कुछ गलत नहीं कहा और भाजपा उन पर झूठ फैलाने का आरोप लगा रही है। यह स्थिति दर्शाती है कि वह अपने विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़ाने पर आमादा हैं, जो कांग्रेस पार्टी की मूल नीतियों के खिलाफ है। कांग्रेस का उद्देश्य सभी भारतीयों को एक साथ लाना है, लेकिन राहुल का यह रवैया इस सिद्धांत का उल्लंघन करता है। उनकी सोच इस ओर इशारा करती है कि उन्हें अपने राजनीतिक स्वार्थों से अधिक मतलब है, जबकि यह वही गलती है जो इंदिरा गांधी ने की थी, जिसके कारण देश को गंभीर परिणाम भुगतने पड़े।
Rahul Gandhi ने सिखों के धार्मिक अधिकारों पर उठाए सवाल
राहुल ने सिखों के धार्मिक अधिकारों पर सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या भारत ऐसा देश नहीं होना चाहिए जहां हर सिख बिना डरे अपने धर्म का पालन कर सके? हालांकि, यह सवाल उठाने पर उन्हें यह समझना चाहिए कि भारत एक ऐसा देश है जहां लोगों को अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन करने की स्वतंत्रता है। उनके इस बयान का वास्तविक उद्देश्य राजनीतिक लाभ हासिल करना हो सकता है, लेकिन इससे स्थिति और भी बिगड़ सकती है।
यह भी संभव है कि राहुल गांधी अपने संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों को पूरा करने के लिए जाति, पंथ और क्षेत्र के आधार पर लोगों के बीच वैमनस्य बढ़ा रहे हैं। उन्होंने जातिगत गणना पर जोर देकर यह दिखाया है कि वह सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं। इसी तरह, वह आरक्षण के मुद्दे पर भी झूठ फैलाने का प्रयास कर रहे हैं, यह दावा करते हुए कि इसे हटाने की साजिश रची जा रही है।
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कांग्रेस पार्टी को यह समझना चाहिए कि विभाजनकारी राजनीति के गंभीर दुष्परिणाम होते हैं। यह सच है कि कांग्रेस देश की आजादी का श्रेय लेती है, लेकिन इसके नेता यदि देश के सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाने का काम कर रहे हैं, तो यह एक गंभीर चिंता का विषय है। इससे केवल राजनीतिक तनाव ही नहीं बढ़ेगा, बल्कि सामाजिक ताने-बाने में भी दरारें पैदा हो सकती हैं, जो अंततः देश के लिए हानिकारक साबित हो सकती हैं।
राहुल गांधी को यह विचार करना चाहिए कि उनका यह रवैया न केवल उन्हें, बल्कि कांग्रेस पार्टी को भी नुकसान पहुंचा सकता है। उन्हें अपनी बयानबाजी पर पुनर्विचार करने और देश के सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने वाले कदम उठाने की आवश्यकता है।