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Tue. Oct 14th, 2025

कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर भारतीय चुनाव आयोग को कठघरे में खड़ा कर दिया है। गुरुवार को नई दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि देश में लोकतंत्र को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है और खुद मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ज्ञानेश कुमार इस पूरी साजिश में “वोट चोरों” को संरक्षण दे रहे हैं।

राहुल ने दावा किया कि उनकी पार्टी के समर्थकों के नाम मतदाता सूची से हटाने की कोशिश की गई है। उन्होंने सीधे शब्दों में कहा, “ज्ञानेश कुमार लोकतंत्र की हत्या करने वालों और वोट चोरों की रक्षा कर रहे हैं। उन्हें यह काम तुरंत बंद करना चाहिए और कर्नाटक की सीआईडी के साथ पूरा सहयोग करना चाहिए।”

कर्नाटक के कलबुर्गी का मामला – चुनाव

राहुल गांधी ने अपने आरोपों को मजबूत करने के लिए कर्नाटक के कलबुर्गी जिले के आलंद विधानसभा क्षेत्र का उदाहरण दिया। उनके अनुसार, यहां कांग्रेस समर्थक मतदाताओं के नाम सुनियोजित तरीके से मतदाता सूची से हटाने की कोशिश की गई।

राहुल ने कहा कि कांग्रेस के कई समर्थकों को यह तक जानकारी नहीं थी कि उनके नाम के खिलाफ मतदाता सूची से हटाने के लिए आवेदन किया गया है। उन्होंने बताया कि इन मतदाताओं की ओर से बिना उनकी अनुमति के नाम हटाने के लिए झूठे दस्तावेजों का इस्तेमाल किया गया। राहुल के मुताबिक यह “एक सुव्यवस्थित षड्यंत्र” है जिसका उद्देश्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित करना है।

कांग्रेस नेता ने कहा कि पार्टी की राज्य इकाई ने इस मामले की जांच की मांग की है और कर्नाटक की सीआईडी पहले से ही मामले की पड़ताल कर रही है। राहुल ने चुनाव आयोग से मांग की कि वह एक सप्ताह के भीतर इस पूरे मामले में सीआईडी को सभी जरूरी दस्तावेज और जानकारी सौंपे ताकि सच्चाई सामने आ सके।

चुनाव मे “लोकतंत्र की हत्या” का गंभीर आरोप

राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि भारत का लोकतंत्र गंभीर खतरे में है। उन्होंने कहा, “हम बार-बार देख रहे हैं कि मतदाता सूची में छेड़छाड़ की जा रही है। यह लोकतंत्र की हत्या के समान है। अगर चुनाव आयोग ही निष्पक्ष नहीं रहेगा तो जनता का विश्वास चुनाव प्रक्रिया से उठ जाएगा।”

उन्होंने मुख्य चुनाव आयुक्त पर सीधे-सीधे हमला बोलते हुए कहा कि ज्ञानेश कुमार को “लोकतंत्र की हत्या करने वालों और वोट चोरों” की रक्षा करना बंद करना चाहिए। राहुल ने यह भी चेतावनी दी कि यदि निर्वाचन आयोग ने इस मामले में समय पर कार्रवाई नहीं की, तो कांग्रेस इस मुद्दे को देशभर में उठाएगी और लोकतंत्र को बचाने के लिए जन आंदोलन करेगी।

चुनाव पर निर्वाचन आयोग की चुप्पी

राहुल गांधी के गंभीर आरोपों पर अब तक निर्वाचन आयोग की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। आमतौर पर चुनाव आयोग इस तरह के आरोपों पर विस्तृत जांच के बाद ही बयान जारी करता है।

चुनाव आयोग का कहना है कि मतदाता सूची में किसी भी नाम को जोड़ने या हटाने के लिए एक पारदर्शी प्रक्रिया होती है जिसमें कई स्तर की जांच शामिल होती है। अब देखने वाली बात होगी कि आयोग राहुल गांधी के इन आरोपों पर कब और क्या प्रतिक्रिया देता है।

भाजपा की संभावित प्रतिक्रिया

हालांकि भाजपा की तरफ से अभी कोई औपचारिक बयान नहीं आया, लेकिन राजनीतिक हलकों में अनुमान लगाया जा रहा है कि भाजपा राहुल गांधी के आरोपों को “बेसिर-पैर का” बताकर खारिज कर सकती है। आमतौर पर भाजपा नेतृत्व ऐसे आरोपों को विपक्ष की “नाटकीय राजनीति” करार देता है और यह तर्क देता है कि निर्वाचन आयोग एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है जिस पर सरकार का कोई दबाव नहीं है।

पार्टी सूत्रों का मानना है कि कांग्रेस राज्य स्तर पर हो रही मतदाता सूची की प्रक्रिया की खामियों को राष्ट्रीय मुद्दा बनाना चाहती है ताकि चुनावों से पहले भाजपा सरकार को घेरा जा सके।

मतदाता सूची में गड़बड़ी – पुराना मुद्दा, नई बहस

मतदाता सूची में नाम काटने या जोड़ने को लेकर विवाद नया नहीं है। कई राज्यों में विपक्षी दल बार-बार यह आरोप लगाते रहे हैं कि चुनाव से पहले सत्ताधारी दल के दबाव में मतदाता सूची से नाम हटाए जाते हैं।

कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 से पहले भी विपक्ष ने चुनाव आयोग पर ऐसे ही आरोप लगाए थे। उस समय भी कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने दावा किया था कि लाखों मतदाताओं के नाम बिना कारण सूची से हटा दिए गए।

राहुल गांधी के ताजा आरोप इस पुराने विवाद को फिर से हवा देते हैं। खासकर इसलिए क्योंकि इस बार उन्होंने सीधे मुख्य चुनाव आयुक्त पर उंगली उठाई है, जो पहले कम ही देखने को मिला है।

राहुल गांधी की राजनीतिक रणनीति

विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी का यह आक्रामक रुख 2029 के आम चुनावों को ध्यान में रखते हुए विपक्ष को एकजुट करने की रणनीति का हिस्सा है।

हाल के महीनों में राहुल लगातार लोकतांत्रिक संस्थाओं की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहे हैं—चाहे वह न्यायपालिका हो, मीडिया हो या अब चुनाव आयोग। उनकी कोशिश है कि जनता के बीच यह संदेश जाए कि लोकतांत्रिक ढांचे पर खतरा मंडरा रहा है और कांग्रेस इस खतरे से लड़ने के लिए तैयार है।

कांग्रेस का मानना है कि भाजपा सरकार के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरने के लिए जनता का भरोसा जीतना जरूरी है और इसके लिए संस्थागत निष्पक्षता पर सवाल उठाना एक अहम हथियार हो सकता है।

आगे की राह

राहुल गांधी के आरोपों के बाद अब सबकी निगाहें चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया पर टिकी हैं। क्या आयोग इस मामले में जांच का आदेश देगा? क्या कर्नाटक की सीआईडी को मांगी गई जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी?

अगर आयोग ने समय रहते कार्रवाई नहीं की तो संभावना है कि कांग्रेस इस मुद्दे को संसद से लेकर सड़क तक उठाएगी। यह मामला न केवल कर्नाटक की राजनीति बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी बड़ा मुद्दा बन सकता है, क्योंकि आने वाले महीनों में कई राज्यों में चुनाव होने वाले हैं और मतदाता सूची की शुद्धता पर भरोसा चुनाव की विश्वसनीयता की बुनियाद है।

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