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Sat. Dec 13th, 2025

क्या है SIR, और क्यों चर्चा में — पृष्ठभूमि – SC

  • SIR, यानी मतदाता सूची का “विशेष गहन पुनरीक्षण” — SC – EC द्वारा कुछ राज्यों (जिनमें बिहार प्रमुख रहा है) में शुरू की गई प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची को अपडेट करना, डुप्लीकेट / अवैध नाम हटाना तथा सूची की विश्वसनीयता सुनिश्चित करना है।
  • लेकिन SIR की इस प्रक्रिया में, कई याचिकाएँ दायर हुईं — दलीलें हैं कि EC, मतदाता सूची सुधार — जो कि उसका संवैधानिक काम है — को “नागरिकता जाँच” (citizenship verification) में बदलने की कोशिश कर रहा है। मतलब, EC के ज़रिए वोटर-लिस्ट से उन लोगों को हटाया जा सकेगा, जिन पर नागरिकता पर शक हो — यह आलोचना मुख्य रूप से इस आधार पर की गई है कि नागरिकता तय करना EC का काम नहीं है।
  • इस विवाद के बीच, SC में याचिकाएं चल रही हैं — और 9 दिसंबर 2025 को, SC ने इस पर अहम सवाल खड़े किए।

9 दिसंबर 2025: SC ने EC से पूछे सीधे सवाल

  • SC की बेंच — जिसमें मुख्य न्यायाधीश Surya Kant और न्यायमूर्ति Joymalya Bagchi शामिल हैं — ने पूछा कि यदि EC को किसी मतदाता की स्थिति संदिग्ध लगती है, तो क्या EC “प्रारंभिक जांच” (preliminary inquiry) तक नहीं कर सकता? यानी EC को यह अधिकार क्यों नहीं कि वह शक की स्थिति में आगे जांच शुरू करे
  • अदालत ने कहा कि यदि वोटर लिस्ट को “साफ-सुथरा” बनाना EC की जिम्मेदारी है, तो वह सिर्फ नाम हटाने का फैसला नहीं — शक की स्थिति में “जांच-रिफर” करने का अधिकार भी रखे।
  • SC ने इस बात पर भी सवाल उठाया कि क्या EC के पास यह अधिकार है कि वह नागरिकता को लेकर अनुमान (presumptive citizenship) तय कर सके — विशेषकर जब वह व्यक्ति पहले से मतदान सूची में हो। यदि नागरिकता तय करना EC की शक्ति में नहीं है, तो ऐसी कार्रवाई संवैधानिक रूप से सही नहीं होगी।

पक्ष — EC क्या कह रहा है, और विरोधी क्या दलीलें दे रहे हैं

EC का तर्क

  • कहता है कि उसकी जिम्मेदारी है मतदाता सूची की विश्वसनीयता सुनिश्चित करना — और इसके लिए “योग्यता” (eligibility) की जांच करना पड़ता है, जिसमें नागरिकता भी शामिल हो सकती है। मतलब, SIR के तहत कुछ “नागरिकता संबंधी शंकाओं” वाले नामों की प्राथमिक समीक्षा करना EC का काम हो सकता है।
  • EC की दलील रही है कि SIR किसी प्रकार का नागरिकता तय करने वाला “नागरिकता निर्धारण” नहीं है — बल्कि सिर्फ सूची को अपडेट, verify या “संभावित असंगतियों” की पहचान करने की प्रक्रिया है, और अगर जांच में गंभीर शक मिले तो संबंधित प्राधिकरण को भेजा जा सकता है।

विरोधी दलीलें (याचिकाकर्ताओं का तर्क)

  • याचिकाकर्ता व वकील — जैसे वरिष्ठ अधिवक्ता Abhishek Manu Singhvi — कहते हैं कि नागरिकता तय करना संवैधानिक रूप से संविदानित है, और केवल केंद्र सरकार या विशेष न्यायाधिकरण (जैसे विदेशियों का ट्रिब्यूनल) के अधिकार क्षेत्र में आता है। EC के माध्यम से नागरिकता तय करने की कोशिश एक “गैर-कानूनी overreach” है।
  • दलील है कि मतदान का अधिकार सिर्फ तीन शर्तों पर आधारित है: नागरिक होना, 18 वर्ष की आयु होना, और किसी प्रकार की अयोग्यता का न होना। मतदाता सूची में पहले से शामिल किसी व्यक्ति की नागरिकता पर शक होने पर भी — सिर्फ शक के आधार पर — नाम हटाना या सूची से बाहर करना संवैधानिक नहीं।
  • उन्होंने यह भी कहा है कि यदि EC के पास इस तरह की शक्ति है — तो यह प्रथा एक तरह के “अप्रत्यक्ष नागरिकता रजिस्टर” (indirect NRC) जैसा बन सकती है — जो संसद की मंजूरी के बिना संवैधानिक रूप से स्वीकार्य नहीं है।

क्यों है यह मसला बेहद संवेदनशील — लोकतंत्र, अधिकार व प्रक्रिया – SC

  • मतदान सूचियों का पुनरीक्षण (Voter roll revision) एक सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया है — ताकि नामों में गलतियाँ, डुप्लीकेट, मृतक/स्थानांतरित व्यक्ति आदि सुधारे जा सकें। यह प्रक्रिया ज़रूरी है।
  • लेकिन जब इसी प्रक्रिया के नाम पर “नागरिकता की प्राथमिक जाँच / शक के आधार पर नाम हटाने” की कोशिश होती है — तो यह सीधे नागरिकता के अधिकार, संवैधानिक व नागरिक अधिकारों, और मतदाता अधिकार (right to vote) पर असर करती है।
  • खासकर उन लोगों के लिए, जो पहले से वोटर सूची में थे — उनका वोटर-कार्ड और मतदान अधिकार — अचानक खतरे में पड़ सकते हैं।
  • अगर EC को यह अधिकार मिलता है कि वह “प्राथमिक जांच” करके संदिग्ध नाम हटाये — तो यह देश में नागरिकता पहचान व मतदाता-पंजीकरण को लेकर एक नई प्रक्रिया शुरू कर सकता है, जिसके दायरे, तरीके, पारदर्शिता व न्यायसंगतता पर बहस होगी।

आगे क्या हो सकता है — कानूनी प्रक्रिया, SC की सुनवाई

  • SC ने याचिकाकर्ताओं व EC — दोनों पक्षों से दलीलें सुनी हैं। अदालत ने स्पष्ट किया है कि यदि EC की प्रक्रिया संवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन करती है या असंगत हो, तो वह SIR प्रोग्राम को रद्द कर सकती है।
  • अगली सुनवाई तय है — और अदालत इस बात पर फोकस करेगी कि EC की “superintendence power” (मतदाता सूची की देख-रेख) का दायरा क्या है — क्या वह सिर्फ सूची की मरम्मत कर सकती है, या नागरिकता सहित गहरी जांच भी कर सकती है।
  • इसका नतीजा सिर्फ एक राज्य या SIR तक सीमित नहीं रहेगा — यदि SC ऐसा फैसला देती है कि EC को नागरिकता जाँच का अधिकार नहीं है, तो यह पूरे देश की मतदाता सूची प्रक्रिया, भविष्य की SIR / roll-revision और वोटर-रजिस्ट्रेशन व्यवस्था के लिए मिसाल बनेगा।

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