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Tue. Oct 14th, 2025

महाराष्ट्र की राजनीति में हमेशा से सक्रिय और बेबाक माने जाने वाले एनसीपी (शरद गुट) के प्रमुख शरद पवार ने एक बार फिर अपने स्पष्ट विचारों से राजनीतिक हलचल मचा दी है। गुरुवार को पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उम्र और उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर उठ रहे सवालों पर चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि किसी को भी यह अधिकार नहीं कि वे पीएम मोदी से राजनीति छोड़ने के लिए कहें। पवार का यह बयान ऐसे समय पर आया है जब कुछ दिनों पहले ही प्रधानमंत्री मोदी ने 75 साल की उम्र पूरी की है और इसी वजह से उनके सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने की अटकलें तेज हो गई थीं।

पवार का साफ़ संदेश – “मैं कहां रुका, तो मोदी को क्यों रुकना चाहिए”

पत्रकारों ने जब शरद पवार से सवाल किया कि क्या प्रधानमंत्री मोदी को भाजपा के वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की तरह सार्वजनिक जीवन से संन्यास ले लेना चाहिए, तो पवार ने अपने अंदाज़ में बेबाकी से जवाब दिया। उन्होंने कहा,
“मैं खुद 85 साल का हूं। मैंने राजनीति से रुकने का फैसला नहीं किया, तो मैं दूसरों को ऐसा करने की सलाह कैसे दे सकता हूं? यह उनका व्यक्तिगत निर्णय है और इसमें किसी और का दखल सही नहीं है।”

इस जवाब से पवार ने स्पष्ट कर दिया कि उम्र केवल एक संख्या है और सक्रिय राजनीति में बने रहने का फैसला पूरी तरह से व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है।

मोदी के 75 पार करने पर क्यों उठ रहे सवाल

भारतीय जनता पार्टी में 75 साल की उम्र को लेकर एक अनौपचारिक परंपरा रही है। 2014 में जब नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने, तो पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं जैसे लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और अन्य को 75 साल की उम्र पार करने के बाद सक्रिय राजनीति से किनारे किया गया था। उस समय यह संदेश दिया गया था कि पार्टी में युवाओं को आगे लाने के लिए एक “एज लिमिट” का नियम अपनाया गया है।

लेकिन अब, जब खुद प्रधानमंत्री मोदी 75 के हो गए हैं, तो राजनीतिक हलकों में यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि क्या वे भी उसी परंपरा का पालन करेंगे। विपक्षी दल लगातार इस मुद्दे को उठाकर भाजपा पर सवाल खड़े कर रहे हैं। हालांकि भाजपा ने कभी भी 75 साल की उम्र को लेकर आधिकारिक रूप से कोई लिखित नियम नहीं बनाया है, लेकिन पवार का बयान इस बहस को और दिलचस्प बना देता है।

शरद पवार की राजनीतिक यात्रा – उम्र को चुनौती

शरद पवार भारतीय राजनीति के सबसे अनुभवी नेताओं में से एक हैं। 1967 में पहली बार विधायक बनने के बाद से अब तक उन्होंने कई अहम पदों पर काम किया है—महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, रक्षा मंत्री, कृषि मंत्री और कई बार केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभाली हैं। 1999 में उन्होंने एनसीपी की स्थापना की और तब से लगातार सक्रिय राजनीति में बने हुए हैं।

85 वर्ष की उम्र में भी पवार न केवल महाराष्ट्र की राजनीति में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी एक अहम भूमिका निभा रहे हैं। उनकी रणनीतिक सूझबूझ और चुनावी अनुभव विपक्षी गठबंधन और सत्ताधारी दल दोनों के लिए मायने रखते हैं। यही वजह है कि वे कहते हैं कि उम्र राजनीतिक सक्रियता को तय नहीं करती।

मोदी और पवार – दो दिग्गज, दो राहें

प्रधानमंत्री मोदी और शरद पवार भारतीय राजनीति के दो ऐसे नेता हैं जिन्होंने अपने-अपने अंदाज से देश की राजनीति को नई दिशा दी है। मोदी जहां संगठनात्मक अनुशासन और सख्त फैसलों के लिए जाने जाते हैं, वहीं पवार लचीले गठबंधन और व्यावहारिक राजनीति के लिए मशहूर हैं।

दोनों नेताओं के बीच कई बार राजनीतिक मतभेद देखने को मिले हैं, लेकिन एक बात समान है—दोनों का कार्यक्षेत्र और उनकी ऊर्जा उम्र से कहीं आगे है। पवार का यह कहना कि “मैं 85 का हूं और अब भी राजनीति में हूं” इस बात को रेखांकित करता है कि राजनीतिक जीवन का अंत किसी निश्चित उम्र पर नहीं बल्कि इच्छा और क्षमता पर निर्भर करता है।

भाजपा पर बढ़ता दबाव

भाजपा में कई वरिष्ठ नेता पहले ही 75 साल की अनौपचारिक सीमा के कारण सक्रिय भूमिकाओं से हट चुके हैं। विपक्षी दल अब इसी परंपरा का हवाला देकर प्रधानमंत्री मोदी पर सवाल उठा रहे हैं। कांग्रेस और अन्य दल लगातार यह तर्क दे रहे हैं कि पार्टी को अपने ही बनाए “नियम” का पालन करना चाहिए। हालांकि भाजपा नेता यह कहते आए हैं कि यह कोई आधिकारिक नीति नहीं है और पार्टी में नेतृत्व क्षमता और जनसमर्थन को ही प्राथमिकता दी जाती है।

पवार के बयान के बाद यह बहस और तेज हो सकती है कि भाजपा 2029 के लोकसभा चुनावों में मोदी को ही अपना चेहरा बनाएगी या नए नेतृत्व को आगे लाएगी।

उम्र बनाम अनुभव – भारतीय राजनीति का नया विमर्श

भारतीय राजनीति में उम्र को लेकर बहस नई नहीं है। पहले भी मोरारजी देसाई 81 साल की उम्र में देश के प्रधानमंत्री बने थे। करुणानिधि, एम. करुणानिधि, ज्योति बसु और कई अन्य नेता 80 और 90 साल की उम्र तक सक्रिय राजनीति में रहे। पवार ने इस परंपरा का उदाहरण देते हुए इशारा किया कि जब तक किसी नेता में काम करने की क्षमता है, तब तक उसे राजनीति से हटने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

यह बयान न केवल मोदी को लेकर चल रही अटकलों को जवाब देता है, बल्कि भारतीय राजनीति में उम्र बनाम अनुभव की बहस को भी नया मोड़ देता है।

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