एलन मस्क की कंपनी SpaceX और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA के बीच का तकनीकी और मिशन संबंध इस समय दुनिया के सबसे भरोसेमंद अंतरिक्ष कार्यक्रमों में से एक बन गया है। NASA अब अपने अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) तक पहुंचाने और वापस लाने के लिए SpaceX के ‘ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट’ पर पूरी तरह निर्भर हो चुका है। लेकिन मौजूदा समय में अमेरिका में चल रही ट्रंप-मस्क राजनीति की खींचतान ने इस सहयोग पर भी सवालिया बादल खड़े कर दिए हैं।
ड्रैगन SpaceX : NASA की मजबूरी या प्राथमिकता?
शुभांशु शुक्ला की रिपोर्ट के अनुसार, NASA ने 2020 से SpaceX के क्रू ड्रैगन यान को अपनी मुख्य उड़ानों के लिए इस्तेमाल करना शुरू किया था। Boeing की Starliner प्रणाली में तकनीकी देरी और खर्च की अधिकता के कारण NASA को SpaceX की ओर रुख करना पड़ा। तब से लेकर अब तक, ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट ने सफलता के साथ कई क्रू मिशन पूरे किए हैं।
राजनीतिक दबावों की आहट
हाल ही में अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और एलन मस्क के बीच वाकयुद्ध ने तूल पकड़ लिया है। मस्क के राजनीतिक बयानों और रिपब्लिकन समर्थनों से जुड़ी गतिविधियों को लेकर ट्रंप खेमा नाराज है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि अगर ट्रंप 2024 में सत्ता में लौटते हैं तो क्या NASA और SpaceX का रिश्ता वैसा ही बना रहेगा?
क्या मिशन पर पड़ेगा असर?
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर राजनीतिक मतभेद गहराए, तो NASA को फिर से वैकल्पिक विकल्प तलाशने पड़ सकते हैं। Boeing की Starliner अभी भी पूरी तरह से व्यावसायिक क्रू सेवा के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में यदि SpaceX से जुड़ी कोई बाधा उत्पन्न होती है, तो अंतरिक्ष मिशनों में देरी और खर्च बढ़ने की पूरी संभावना है।
अंतरराष्ट्रीय असर
यह सिर्फ अमेरिका का मामला नहीं है। NASA के ज़रिए कई अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष यात्रियों को ISS तक पहुंचाने में भी ड्रैगन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि यह सिस्टम बाधित होता है, तो यूरोपीय, जापानी और अन्य साझेदार देशों के मिशन भी प्रभावित होंगे। ऐसे में वैश्विक अंतरिक्ष सहयोग पर भी इसका असर पड़ सकता है।
एलन मस्क की भूमिका
एलन मस्क ने समय-समय पर राजनीतिक, सैन्य और अंतरिक्ष नीति पर अपने विचार खुलकर रखे हैं। वे एक ओर जहां अमेरिकी रक्षा विभाग के साथ Starlink और अन्य रक्षा प्रोजेक्ट में शामिल हैं, वहीं दूसरी ओर सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर सरकार से टकराव भी लेते रहे हैं। इस दोधारी भूमिका के चलते उनकी कंपनियों पर राजनीतिक दबाव बनना स्वाभाविक है।
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