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Tue. Oct 28th, 2025

टीएमसी बनाम चुनाव आयोग – देशभर में मतदाता सूची के “स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन” (SIR 2.0) अभियान की घोषणा के बाद पश्चिम बंगाल में सियासी माहौल गर्म हो गया है। चुनाव आयोग ने 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 4 नवंबर से इस प्रक्रिया की शुरुआत की घोषणा की है, ताकि मतदाता सूची को अद्यतन और शुद्ध बनाया जा सके। लेकिन इस पहल पर अब सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (TMC) और विपक्षी दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज हो गया है।

वैध मतदाताओं को परेशान किया गया तो करेंगे विरोध -टीएमसी का आरोप

पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने स्पष्ट किया है कि वे मतदाता सूची के पारदर्शी और लोकतांत्रिक पुनरीक्षण के पक्ष में हैं, लेकिन अगर इस प्रक्रिया में किसी भी वैध मतदाता को परेशान किया गया या उसका नाम गलत तरीके से हटाया गया, तो पार्टी इसका कड़ा विरोध करेगी।

टीएमसी नेताओं ने कहा है कि एसआईआर का उद्देश्य पारदर्शिता होना चाहिए, न कि किसी विशेष वर्ग या समुदाय को लक्षित करना। पार्टी प्रवक्ता ने कहा,

“हम लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान करते हैं, लेकिन अगर वैध मतदाताओं को परेशान किया गया तो हम सड़क से संसद तक विरोध करेंगे। राज्य सरकार और राज्य के विभाग अपने धर्म का पालन करेंगे, लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि चुनाव आयोग राजनीतिक दबाव में कोई पक्षपातपूर्ण कदम नहीं उठाएगा।”

टीएमसी का कहना है कि आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पुनरीक्षण प्रक्रिया में किसी नागरिक को उसकी पहचान या पते के आधार पर परेशान न किया जाए।

भाजपा ने टीएमसी पर लगाया पलटवार – “फर्जी मतदाता हटाने से डर रही है ममता सरकार”

टीएमसी के इस बयान पर पश्चिम बंगाल भाजपा ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। भाजपा नेता कैलाश घोष ने कहा कि अगर तृणमूल कांग्रेस को ईमानदारी से अपनी नीतियों पर भरोसा है तो उसे इस प्रक्रिया से डरने की जरूरत नहीं।

भाजपा का दावा है कि बंगाल की मतदाता सूची में लंबे समय से फर्जी और अवैध मतदाता शामिल हैं, जिनकी वजह से चुनावों की पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं। पार्टी का आरोप है कि तृणमूल कांग्रेस को डर है कि अगर मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण हुआ तो उनका “वोट बैंक” कमजोर पड़ सकता है।

घोष ने कहा,

“ममता बनर्जी की सरकार एसआईआर प्रक्रिया से इसलिए घबराई हुई है क्योंकि उनके वोट बैंक में अवैध घुसपैठिए शामिल हैं। भाजपा का मानना है कि बंगाल में किसी भी फर्जी या अवैध मतदाता का नाम नहीं रहना चाहिए। पारदर्शिता सभी के लिए समान होनी चाहिए।”

भाजपा नेताओं ने यह भी आरोप लगाया कि टीएमसी जानबूझकर “घुसपैठ” के मुद्दे को छिपाना चाहती है, ताकि राजनीतिक लाभ उठा सके।

डीएमके ने भी उठाए सवाल – चुनाव आयोग पर लगाया पक्षपात का आरोप

इस विवाद में दक्षिण भारत की प्रमुख पार्टी डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) भी कूद पड़ी है। डीएमके के प्रवक्ता सर्वानन अन्नादुरई ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए कहा कि एसआईआर प्रक्रिया कुछ राज्यों में लागू की जा रही है, जबकि असम जैसे राज्यों को इससे बाहर रखा गया है।

डीएमके प्रवक्ता ने कहा,

“हम यह सवाल पूछते हैं कि असम में एसआईआर क्यों नहीं किया जा रहा? क्या वहां कोई राजनीतिक कारण है? बिहार में चुनाव आयोग ने कितने फर्जी मतदाता पाए हैं, इसका जवाब आयोग को देना चाहिए।”

उन्होंने यह भी कहा कि 2003 को कटऑफ वर्ष बनाने का कोई तर्कसंगत कारण नहीं है और इससे कई नागरिकों को परेशानी झेलनी पड़ सकती है।

डीएमके ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग सत्तारूढ़ भाजपा के दबाव में काम कर रहा है।

“हम देख रहे हैं कि चुनाव आयोग भाजपा के साथ मिलकर वोट चोरी में शामिल है। चुनाव आयोग की विश्वसनीयता इस समय सबसे निचले स्तर पर है,” — डीएमके नेता ने कहा।

क्या है SIR 2.0 प्रक्रिया?

SIR यानी Special Intensive Revision of Electoral Rolls, मतदाता सूची की विशेष गहन समीक्षा की प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि

  1. सभी योग्य नागरिकों के नाम सूची में शामिल हों,
  2. मृतक या फर्जी मतदाताओं के नाम हटाए जाएँ,
  3. और सूची में दर्ज सभी विवरण सही और अद्यतन हों।

यह प्रक्रिया 4 नवंबर 2025 से तीन महीने तक चलेगी और इसके दौरान घर-घर जाकर बूथ-स्तरीय अधिकारी मतदाताओं का सत्यापन करेंगे।

12 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश इस चरण में शामिल हैं — जिनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, जम्मू-कश्मीर और दिल्ली शामिल हैं।

असम को इस चरण से फिलहाल अलग रखा गया है, जिसके लिए अलग आदेश जारी होगा।

राजनीतिक मायने और विवाद की वजह – टीएमसी

मतदाता सूची का यह पुनरीक्षण सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में इसका राजनीतिक असर गहरा है।

बंगाल में टीएमसी को डर है कि केंद्र के इशारे पर मतदाता सूची में छेड़छाड़ की जा सकती है।

वहीं भाजपा इसे “मतदान की पवित्रता बहाल करने” की दिशा में बड़ा कदम बता रही है।

डीएमके जैसे दल इसे “भाजपा-समर्थित चुनाव आयोग” की रणनीति बता रहे हैं।

इन बयानों ने आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों से पहले राजनीतिक माहौल को और गरमा दिया है।

चुनाव आयोग की सफाई

इन आरोपों पर चुनाव आयोग ने कहा है कि एसआईआर प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और लोकतांत्रिक तरीके से की जाएगी। आयोग ने राज्यों से कहा है कि किसी भी वैध मतदाता को परेशान न किया जाए और सभी दलों को समान अवसर दिए जाएँ।

आयोग का कहना है कि

“हम केवल यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि मतदाता सूची अद्यतन, सटीक और त्रुटिरहित हो। इस प्रक्रिया में किसी के अधिकारों का हनन नहीं होगा।”

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