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Thu. Nov 21st, 2024

ISRO ने किया बड़ा खुलसा

ISRO ने बताया कि इस बार प्रक्षेपण यान का परीक्षण अधिक चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में किया गया और वह सभी मानकों पर खरा उतरा।

इस परीक्षण में इसरो ने लैंडिंग इंटरफेस और तेज गति में विमान की लैंडिंग की स्थितियों की जांच की। इस परीक्षण के साथ ही इसरो ने आज की सबसे महत्वपूर्ण तकनीकों में से एक को हासिल करने की दिशा में मजबूती से कदम बढ़ाया है .

ISRO ने हासिल की एक और बड़ी सफलता

ISRO : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने रविवार को घोषणा की कि उसने अपनी पुन: उपयोग योग्य प्रक्षेपण यान (रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल) तकनीक का तीसरी बार सफल परीक्षण किया है।

इस बार, परीक्षण को और अधिक चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में किया गया और प्रक्षेपण यान सभी मानकों पर खरा उतरा। इस परीक्षण के दौरान, इसरो ने लैंडिंग इंटरफेस और उच्च गति में विमान की लैंडिंग की स्थितियों की जांच की।

इस सफलता के साथ, इसरो ने आधुनिक समय की सबसे महत्वपूर्ण तकनीकों में से एक को हासिल करने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है।

ISRO

रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल (RLV) तकनीक का सफल हुआ परीक्षण

ISRO ने रविवार सुबह 7.10 बजे कर्नाटक के चित्रदुर्ग में एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज में रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल का तीसरा और अंतिम परीक्षण किया।

इससे पहले इसरो दो सफल परीक्षण कर चुका था। तीसरे परीक्षण में प्रक्षेपण यान को अधिक ऊंचाई से छोड़ा गया और तेज हवाओं के बावजूद ‘पुष्पक’ ने पूरी सटीकता के साथ रनवे पर सुरक्षित लैंडिंग की.

कैसे चिनूक छोड़ा गया प्रक्षेपण यान ‘पुष्पक’ हेलीकॉप्टर से हवा में ?

ISRO परीक्षण के दौरान, वायुसेना के चिनूक हेलीकॉप्टर से प्रक्षेपण यान ‘पुष्पक’ को साढ़े चार किलोमीटर की ऊंचाई से छोड़ा गया. इसके बाद ‘पुष्पक’ ने स्वायत्त तरीके से रनवे पर सफलतापूर्वक लैंडिंग की.

ISRO लैंडिंग के समय यान की गति लगभग 320 किलोमीटर प्रति घंटे थी. तुलना के लिए, एक कमर्शियल विमान की लैंडिंग गति लगभग 260 किलोमीटर प्रति घंटे और एक लड़ाकू विमान की लगभग 280 किलोमीटर प्रति घंटे होती है.

लैंडिंग के समय पहले ब्रेक पैराशूट की मदद से प्रक्षेपण यान की गति को घटाकर 100 किलोमीटर प्रति घंटे पर लाया गया, और फिर लैंडिंग गियर ब्रेक की मदद से यान को रनवे पर रोका गया।

यह तकनीक की मदद से अंतरिक्ष मिशन में बचेंगे पैसे

ISRO परीक्षण के दौरान यान के रूडर और नोज व्हील स्टीयरिंग सिस्टम की भी कार्यक्षमता की जांच की गई। भविष्य में प्रक्षेपण यान को अंतरिक्ष में भेजने और उसे वापस सुरक्षित धरती पर उतारकर फिर से अंतरिक्ष में भेजने के लिहाज से यह तकनीक बेहद अहम है।

इस तकनीक की मदद से इसरो की लागत में काफी कमी आएगी क्योंकि किसी भी अंतरिक्ष मिशन में प्रक्षेपण यान की लागत काफी ज्यादा होती है और अभी एक बार इस्तेमाल होने के बाद यान को दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जाता। अब रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल तकनीक की मदद से अंतरिक्ष में बढ़ रहे कचरे की समस्या से भी निपटा जा सकेगा।

रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल के लैंडिंग परीक्षण के दौरान यान में मल्टी-सेंसर फ्यूजन का उपयोग किया गया, जिसमें इनर्शियल सेंसर, रडार अल्टीमीटर, फ्लश एयर डेटा सिस्टम, स्यूडोलाइट सिस्टम और एनएवीआईसी जैसे सेंसर शामिल हैं।

इसरो का कहना है कि इस परीक्षण में भी पिछले परीक्षणों के दौरान इस्तेमाल की गई यान की बॉडी और उड़ान प्रणालियों का फिर से इस्तेमाल किया गया, जो इसरो की डिजाइन क्षमता को दर्शाता है।

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विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के नेतृत्व में इस मिशन में इसरो के अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (एसएसी), ISRO टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क (आईएसटीआरएसी) और सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी), श्रीहरिकोटा भी शामिल रहे।

साथ ही वायुसेना के तकनीकी विभाग के साथ ही आईआईटी कानपुर, नेशनल एयरोस्पेस लैबोरेट्री, इंडियन एयरोस्पेस इंडस्ट्रियल पार्टनर्स, इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया और एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने भी अहम सहयोग किया।

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